नई दिल्ली । देश भर के ज्ञान आधारित संगठन प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया का उपयोग करके कोविड – 19 पर वैज्ञानिक जागरूकता पैदा कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान और इसके बाद की अवधि के लिए वैज्ञानिक सामाजिक जिम्मेदारी (एसएसआर) के तहत सामुदायिक स्तर पर सामर्थ्य निर्माण के लिए विभिन्न पहलों की शुरुआत की गयी है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा जारी किये गए परामर्श को ध्यान में रखते हुए इस प्रयासों को शुरू किया गया है।
डीएसटी के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने तत्काल और दीर्घकालिक एस एंड टी हस्तक्षेप की आवश्यकता के बारे में विस्तार से बताया और कहा किया कि एसएसआर आगे का रास्ता है। जिन कार्यों की जानकारी मिली है वे हमारे वैज्ञानिकों के ज्ञान और संसाधनों के स्वैच्छिक योगदान एवं सेवा की भावना को दर्शाते हैं। ये प्रयास समाज के लगभग सभी हितधारकों को ध्यान में रखकर किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक आर्थिक कायाकल्प और सामर्थ्य निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
डीएसटी के द्वारा वित्त पोषित प्रयोगशालाओं – सीएसआईआर-एनबीआरआई, आईसीएआर लैब्स, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, मणिपुर विश्वविद्यालय, एसकेएयूएसटी, श्रीनगर, बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज, फरीदकोट, पंजाब ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों के अनुरूप सनीटाईजर का विकास करने और इनका वितरण करने तथा प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार मास्क तैयार करने में अपने ज्ञान और संसाधनों का योगदान दिया। कोविड – 19 परीक्षण के लिए सेवाएं उपलब्ध कराई गयीं।
एम्स, नई दिल्ली में पहले से चल रही परियोजनाओं के तहत गर्भवती महिलाओं के लिए एक मोबाइल ऐप आधारित नियमित सलाह सेवा शुरू की गयी है। शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी ऑफ कश्मीर (एसकेएयूएसटी), श्रीनगर ने पहले से चल रही परियोजनाओं के तहत मवेशियों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए एक टेलीमेडिसिन सुविधा शुरू की है। श्वसन से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए, आयुर्वेद के सिद्धांतों पर सिकुडन कम करनेवाला एक हर्बल स्प्रे विकसित किया गया है। एम्स-नई दिल्ली, सफदरजंग-नई दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के पुलिस विभाग और यूपी में प्रवासी आबादी के बीच 5000 लीटर से अधिक सैनिटाइजर वितरित किए गए हैं और महामारी की रोकथाम के लिए यह प्रक्रिया जारी है। डीएसटी द्वारा वित्त पोषित परियोजना के तहत विकसित हर्बल सैनिटाइजर की तकनीक को बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए और किफायती दर पर आपूर्ति बनाए रखने के लिए कंपनियों को हस्तांतरित किया गया है। स्थानीय स्तर पर उत्पाद के वितरण के लिए प्रोटोकॉल को स्वैच्छिक संगठनों के साथ साझा किया गया है।
कोविड -19 महामारी के दौरान मनोवैज्ञानिक समस्याओं को कम करने के लिए के लिए एक मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा-महामारी (पीएफए-ई) विकसित की जा रही है। इसके लिए गूगल फॉर्म का भी उपयोग किया जा रहा है। प्रामाणिक संसाधनों के माध्यम से समुदाय द्वारा कोविड और मनो-सामाजिक प्रतिक्रिया से संबंधित साहित्य प्रकाशित किया जा रहे हैं।
कृषि – श्रमिकों के आने-जाने तथा विभिन्न फसलों के लिए किये जानेवाले कृषि-कार्य के दौरान संपर्क को कम करने के लिए कृषि कार्य योजना विकसित की जा रही है। हाथों और सतह को कीटाणु मुक्त करने के लिए जैव-आर्द्रता आधारित फार्मूलेशन के निर्माण का प्रस्ताव दिया गया है। यह एक गैर विषैला, जैव -अनुकूल और किफायती उत्पाद होगा। घातक वायरस से लड़ने के लिए इसे शरीर पर पोंछा जा सकेगा। रोगाणुनाशन के लिए ओजोन माइक्रो-नैनो-बबल्स (एम्एनबी ) के उपयोग के लिए भी एक प्रस्ताव दिया गया है और इन्हें 6 महीने के अन्दर तैयार कर लिया जाएगा।
द साइंस फॉर इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट (एसईईडी) डिवीजन, समाज के लिए एस एंड टी इंटरफ़ेस है। डीएसटी इन ज्ञान आधारित संगठनों को समर्थन प्रदान करता है। समाज की विभिन्न चुनौतियों से निपटने के लिए डीएसटी हमेशा प्रयासरत रहता है। महामारी से उत्पन्न चुनौतियों और खतरे का सामना करने के लिए समाज की तैयारियों को सुनिश्चित करने तथा कोविड – 19 के दीर्घकालिक प्रभाव को कम करने की दिशा में डीएसटी निरंतर कार्य कर रहा है।