केंद्र सरकार की योजना के तहत देश में पीआईसी भारत कार्यक्रम चलाया जा रहा है जिसके अंतर्गत देश के तमाम वैज्ञानिक गोमूत्र और गोबर पर अनुसंधान कर रहे हैं। हाल ही में बजट सत्र के पहले चरण में केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू करने की पहल की है। दरअसल विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने “पीआईसी भारत कार्यक्रम” (अनुसंधान संर्वधन-स्वदेशी गायों के उत्तम उत्पादों के माध्यम से वैज्ञानिक प्रयोग) नामक विषय पर राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू करने की पहल की है।
कई मंत्रालय मिलकर कर रहे कार्य
इस कार्यक्रम में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और आयुष मंत्रालय का मिलकर काम कर रहे हैं।
अलग अलग क्षेत्रों में गाय की उपयोगिता पर अध्ययन
कार्यक्रम के तहत, स्वदेशी गाय की विलक्षणता और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के लिए स्वदेशी गाय के प्रमुख उत्पाद, कृषि अनुप्रयोग, खाद्य और पोषण एवं उपभोक्ता वस्तु के विषयगत क्षेत्रों में वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों से मुक्त आह्वान के माध्यम से परियोजना प्रस्ताव आमंत्रित किए गए हैं। इनमें भारतीय अनुसंधान संस्थानों, शिक्षाविदों, एसएंडटी सक्षम स्वैच्छिक संगठनों (एनजीओ) के वैज्ञानिकों और शिक्षाविद शामिल हैं। हालांकि कुछ पूर्व भारतीय वैज्ञानिकों ने “पीआईसी कार्यक्रम” के तहत अनुसंधान के वित्तपोषण का विरोध किया था।
पशु नस्लों की जैव विविधता के साथ विश्व में पशुओं की सर्वाधिक आबादी वाला देश भारत
भारत 43 स्वदेशी पशु नस्लों की व्यापक जैव विविधता के साथ विश्व में पशुओं की सर्वाधिक आबादी वाला देश है। भारतीय पशु नस्ल वंशानुगत रूप से पशु नस्लों की उत्पत्ति और संबंधित स्थानीय पर्यावरण में इसके अनुकूलन के लिए अद्वितीय है।
पुरातन विज्ञान में अनुसंधान को प्रोत्साहित करने पर उठाए गए कदम
भारतीय पशु नस्लों की विशिष्टता की समझ और गाय से उत्पन्न उत्पादों के प्रभाव का प्रभावी उपयोग इनके अनुभवों के आधार पर कई पीढ़ियों से पारंपरिक ज्ञान तक सीमित है। अब सरकार इस कार्यक्रम के माध्यम से आधुनिक प्रकियाविधि और साधनों का उपयोग करके पारंपरिक पद्धतियों का वैज्ञानिक रूप से अन्वेषण करने के लिए सम्मिलित प्रयास कर रही है। इस ज्ञान से सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए इस व्यापक राष्ट्रीय संसाधन का वैज्ञानिक रूप से उचित उपयोग करने में भी मदद मिलेगी। इसके साथ ही प्राचीन विज्ञान से संबंधित अन्य क्षेत्र में योग और चिंतन की पद्धतियों के वैज्ञानिक अन्वेषण में अंतरविषयक कार्यक्रम वर्ष 2015 में प्रवर्तित किया गया। इस कार्यक्रम को योग एवं मनन विज्ञान और प्रौद्योगिकी (सत्यम) के नाम से जाना जाता है।