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खरमास है खास, भ्रांतिया न पाले,जरूर जाने इस मास में क्या करें, क्या न करें ?

( डॉक्टर लोकनाथ पांडेय )

वाराणसी। बीएचयू ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष विनय कुमार पांडेय ने खरमास को लेकर कई गूढ़ बातें बताई। उन्होंने कहा कि भारत एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक एवं व्रत पर्व तथा उत्सवों का देश है। यहां की अर्थव्यवस्था भी इसी पर निर्भर रहती है। यहाँ वर्ष भर पर्व, उत्सव एवं विभिन्न कार्यक्रम मौसम तथा समय के अनुरूप निर्धारित होकर चैत्रादि मासों में आयोजित होते रहते हैं। इसके पीछे प्राचीन काल से मान्यता है कि इसी बहाने मानव जीवन एवं समाज में निरंतरता और उत्साह भी बना रहता है। यहाँ की संस्कृति में अतीत को स्मरण करते हुए वर्तमान में जीवन यापन कर भविष्य को संरक्षित करने की व्यवस्था अत्यंत प्राचीन काल से चली आ रही है। यदा-कदा कुछ भ्रम की स्थितियां इस निरंतरता में व्यवधान उत्पन्न करते हुए इस शाश्वत विकास में अवरोध भी उत्पन्न कर देती हैं। इससे बचने के लिए खरमास की गूढ़ बातें सबको जान लेनी चाहिए।

14 जनवरी तक रहेगा खरमास

इस वर्ष 16 दिसम्बर से लगा खरमास 14 जनवरी 2021 तक रहेगा। इन खास 30 दिनों में होने वाले तमाम गतिविधियों को लेकर जनमानस में कुछ भ्रम की ऐसी ही स्थितियां उत्पन्न हो गई हैं जो कि एक स्वस्थ एवं प्रगतिशील समाज के लिए लाभदायक नहीं माना जा सकता। इससे संबंधित वास्तविक स्थिति का विवेचन जान लेना बेहद जरूरी है।

राशियों का पड़ता है प्रभाव

धनु एवं मीन राशि बृहस्पति ग्रह की राशियाँ हैं। इनमे ग्रहराज सूर्य के प्रवेश करते ही खरमास दोष लगता है। ज्योतिष तत्व विवेक नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि
“रविक्षेत्र गते जीवे जीवक्षेत्र गते रवौ।
गुर्वादित्यः स विज्ञेयः गर्हितः सर्वकर्मसु।।
वर्जयेत्सर्वकार्याणि व्रतस्वत्यनादिकम्।।”
अर्थात सूर्य की राशि में गुरु हो तथा गुरु की राशि में सूर्य संक्रमण कर रहा हो तो उस काल को ‘ गुर्वादित्य’ नाम से जाना जाता है। जो समस्त शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है।

30 दिनों के लिए है शास्त्र में व्यवस्था

खरमास के 30 दिनों में क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए? इसको लेकर समाज में भ्रम की स्थितियां उत्पन्न रहती है। जबकि इसके लिए शास्त्रों में स्पष्ट व्यवस्था दी गई है। खरमास में फल की प्राप्ति की कामना से किये जाने वाले प्रायः सभी काम जैसे- कुएँ, बावली, तालाब, (बोरिंग) खोदना और उनकी प्रतिष्ठा करना, बाग आदि का आरंभ और प्रतिष्ठा, किसी भी प्रयोजन के व्रतों का आरंभ और उद्यापन, जन्म के 6 महीने बाद होने वाले सभी संस्कार जैसे कर्णवेध, मुण्डन, यज्ञोपवीत, समावर्तन, विवाह, वधुप्रवेश, द्विरागमन, पृथ्वी, तुला आदि के 16 महादान, सोमादि यज्ञ, अष्टका श्राद्ध, गोदान, प्रथम उपाकर्म, वेदारम्भ, नियत कल में बालकों के न किए हुए संस्कार, देवप्रतिष्ठा, प्रथम बार की तीर्थयात्रा एवं देव दर्शन, संन्यास ग्रहण, अग्निपरिग्रह, राज्याभिषेक, प्रथम बार राजा का दर्शन, अभिषेक, प्रथम यात्रा, चातुर्मासीय व्रतों का प्रथमारम्भ आदि अधिमास में वर्जित हैं। परंतु अलभ्य योगों के प्रयोग; अनावृष्टि के अवसर पर वर्षा हेतु विहित पुरश्चरण, ग्रहण कालिक स्नान, दान, श्राद्ध, और जपादि, पुत्र जन्म के कृत्य और पितृमरण के श्राद्धादि तथा गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण और अन्नप्राशन संस्कार , नया वस्त्र खरीदना एवं धारण करना, आभूषण क्रय, फ्लैट, मकान, टी. वी, फ्रीज, कूलर, एसी, नया वाहन और नित्य उपयोग की वस्तुओं को खरीदना और प्रथम बार उपयोग करना भी शुभ होता है।

खरमास में आभूषण, रत्न भी खरीद सकते हैं

खरमास में नये रत्न-आभूषणों की खरीदारी भी कर सकते हैं। परन्तु खरमास में इन्हे धारण नही करना चाहिए। इस महीने में निष्काम भाव से ईश्वर के उद्देश्य से जो व्रत आदि किये जाते हैं उनका अक्षय फल होता है और व्रती के सम्पूर्ण अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं। अतः इस महीने के कृत्य का अक्षय फल होता है। इस काल में जरूरतमंदों, साधुओं और दीन दुखियों की सेवा सर्वोत्तम सेवा है। इनके लिये वस्त्र भोजन आदि की व्यवस्थाएँ करने तीर्थ स्नानादि के समान फल होता है।

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