मथुरा : मथुरा की मांट तहसील के सुरीर कस्बे के एक क्षेत्र में महिलाएं करवा चौथ नहीं मनाती हैं। सुरीर बिजउ कस्बे के बघा क्षेत्र में करवा चौथ न मनाने के पीछे एक विवाहिता द्वारा दिया गया श्राप है। इस श्राप का भयावह असर देखकर इस गांव की महिलाएं करवा चौथ नही मनाती हैं।
समाजसेवी गंगाधर ने बताया कि 250 वर्ष से अधिक समय पहले करवा चौथ के दिन एक ब्राह्मण अपनी पत्नी को अपनी ससुराल राम नगला से विदा कराकर भैंसा गाड़ी से अपने गांव जा रहा था। भैंसा गाड़ी जब गांव से निकल रही थी तो भैंसे को लेकर बघा में विवाद हो गया। बघा के एक व्यक्ति का आरोप था कि भैंसा उसका है जिसे चुराया गया है जबकि महिला का पति कह रहा था कि उसे यह भैंसा ससुराल से मिला है।इसके बाद कहासुनी हुई तो बघा गांव के अन्य लोगों ने भी अपने ही गांव के आदमी का साथ देते हुए भैंसागाड़ी को रोक दिया। इस पर मारपीट हुई और लाठी डंडे चले जिसमें महिला के पति की मृत्यु हो गई। बाघ की निवासी 103 वर्षीय सुनहरी देवी ने बताया कि उसकी सास ने भी गांव में करवा चौथ नही मनाया था और सती के श्राप से वह तथा गांव की अन्य महिलाएं भी करवा चौथ नही मना रही हैं।
उन्होने बताया कि इससे कुपित महिला वहीं पर सती हो गई मगर सती होने के पहले उसने श्राप दिया कि इस गांव की कोई महिला करवा चौथ नही मना पाएगी क्योंकि इस पावन दिवस पर इस गांव के लोगों ने उसके पति की हत्या की है। शुरू में ग्रामीणों ने इसे गंभीरता से नही लिया लेकिन जब करवा चौथ मनानेवाली महिलाओं के पति के निधन की एक दर्जन से अधिक घटनाएं हुईं तो इस गांव की महिलाओ ने करवा चौथ का मनाना बन्द कर दिया। बाद में उसी स्थल पर सती का मन्दिर बनाया गया।इस मन्दिर में करवा चौथ पर विशेष पूजन अर्चन होता है। उन्होंने बताया कि पुराने समय में बघा सुरीर बिजउ गांव का छोटा भाग था किंतु विकास के साथ अब सुरीर बिजउ कस्बे का बघा एक मोहल्ला बन गया है।
इसके विपरीत कान्हा की नगरी के अन्य क्षेत्रों की महिलाए निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी आयु, तरक्की और अच्छे स्वास्थ के लिए करवा चौथ मनाती हैं, जिसका पारण चांद निकलने पर ही किया जाता है। इस बार यह व्रत 20 अक्टूबर को रखा जाएगा।पौराणिक कथाओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने रखा था। पर्वतराज हिमालय और देवी मैनावती की पुत्री पार्वती ने नारद जी की सलाह पर भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी लेकिन शिवजी न तो प्रसन्न हो रहे थे और न ही दर्शन दे रहे थे। तब माता पार्वती ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को निर्जला उपवास रखकर शिव-साधना की थी।
कहते इसी व्रत से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना के लिए यह व्रत करती हैं और देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं द्वारा व्रत रखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस उपवास को रखने से वैवाहिक जीवन में खुशियां बनी रहती है , साथ ही पति-पत्नी के रिश्तों में मजबूती आती है। सभी उपवासों में से करवा चौथ के व्रत को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।ज्योतिषाचार्य पं. अजय कुमार तैलंग ने बताया कि पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चैथ का पर्व मनाया जाता है। इस साल 20 अक्तूबर 2024 को करवा चाैथ का व्रत रखा जाएगा। इस दिन व्यतीपात योग के साथ कृत्तिका नक्षत्र का संयोग बन रहा है, जो व्रत की महत्ता को और अधिक बढ़ा रहा है। ऐसे में चांद की पूजा करना और भी लाभदायक होगा, जिससे व्रत के संपूर्ण फल की प्राप्ति होगी।
उन्होने बताया कि करवा चौथ पर पूजा का शुभ मुहूर्त 20 अक्तूबर शाम 5 बजे से शुरू होगा। यह मुहूर्त शाम 7 बजे तक रहेगा तथा चन्द्रमा निकलने का समय शाम 8 बजकर 18 मिनट का है। परंपरा के अनुसार करवा चौथ से एक दिन पहले की आधी रात के बाद सरगी यानी स्वल्पाहार लिया जाता है। बहुत सी महिलाएं इसके बाद पानी नही पीतीं जब कि इसके बाद पानी पीना आवश्यक है। यह सरगी सामान्यतया बहुओं की सास देती हैं तथा जिन महिलाओं के सास नही होती वे जेठानी या बहन से भी सरगी ले सकती हैं। इस व्रत में महिलाएं सोलह श्रंगार कर पूजन करती हैं तथा उनके लिए इस व्रत से अधिक महत्वपूर्ण अन्य कोई व्रत नही है। (वार्ता)
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