एचआईवी/एड्स : जागरूकता, बचाव और उपचार की दिशा में पहल
विश्व एड्स दिवस 2025 के अवसर पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि एचआईवी/एड्स से बचाव का सबसे बड़ा हथियार जागरूकता है, क्योंकि इस बीमारी का अब तक कोई स्थायी इलाज उपलब्ध नहीं है। एचआईवी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है और समय पर जांच तथा उपचार न होने पर यह एड्स में बदल सकता है। असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित सुई-सीरिंज, बिना जांच का रक्त और माँ से बच्चे में संक्रमण के प्रमुख कारण हैं। एआरटी दवा से वायरस नियंत्रित किया जा सकता है और संक्रमित व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है। विशेषज्ञों ने सुरक्षित व्यवहार, नियमित परीक्षण और सामाजिक भ्रांतियाँ दूर करने की अपील की।
बिहार के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. शैलेश विद्यार्थी ने कहा कि एचआईवी/एड्स की सुरक्षा संबंधी जानकारी हर किसी तक पहुंचनी चाहिए ,क्योंकि इस बीमारी का अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं है डॉ. विद्यार्थी ने बताया कि एचआईवी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर हमला करता है और समय रहते जांच-इलाज न होने पर एड्स तक पहुंच सकता है। उन्होंने कहा कि एचआईवी से बचाव का सबसे बड़ा हथियार जागरूकता ही है।
एचआईवी/एड्स संक्रमण क्या है?
एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) एक वायरस है जो शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रणाली को कमजोर कर देता ह। इस वायरस के कारण एड्स (Acquired Immunodeficiency Syndrome) होता है। वर्तमान में एचआईवी/एड्स का कोई स्थायी इलाज नहीं है ; एक बार संक्रमित होने पर व्यक्ति के साथ वायरस जीवन भर रहता है। हालांकि उचित चिकित्सा देखभाल (ART, एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी) से वायरस को नियंत्रित किया जा सकता है। नियमित दवा लेने पर एचआईवी संक्रमित व्यक्ति स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आँकड़ों के अनुसार, 2024 में दुनिया में लगभग 40.8 करोड़ लोग एचआईवी से प्रभावित थे और 6.3 लाख की मौतें एचआईवी-एड्स से हुई । भारत में सक्रिय रूप से 18 लाख से अधिक लोग एचआईवी संक्रमण के लिए इलाज प्राप्त कर रहे हैं और सरकार ने इन सभी को मुफ्त एआरटी उपलब्ध कराई है। भारत की तेज प्रगति से 2010 में 1.73 लाख से अधिक मौतें घटकर 2024 में मात्र 32,200 रह गईं (81% की कमी), जो सफल चिकित्सा सेवाओं और समुदाय आधारित कार्यक्रमों का परिणाम है।
संक्रमण के लक्षण
एचआईवी संक्रमण के शुरुआती लक्षण आमतौर पर फ्लू जैसे होते हैं। संक्रमण के 2-4 सप्ताह बाद बुखार, थकान, सिरदर्द, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द, रात को पसीना आना, गिल्टियां (रैश) आदि दिखाई दे सकते हैं। कुछ संक्रमित लोगों में सूजे हुए लिम्फ नोड्स और मुँह में अल्सर भी हो सकते हैं। ये लक्षण कुछ दिनों से लेकर हफ्तों तक रह सकते हैं, या गायब भी हो सकते हैं। प्रारंभिक चरण में लक्षण न भी दिखें, पर वायरस तेजी से बढ़ता रहता है।
एचआईवी की गम्भीर स्थिति (एड्स) में, रोगी को लगातार बुखार, वजन घटना, दस्त, फेफड़ों या मस्तिष्क सहित अन्य अंगों में संक्रामक बीमारियाँ (अवसरवादी संक्रमण) होने लगती हैं । यदि समय पर दवा शुरू न हो, तो रोगी की प्रतिरोधक क्षमता अत्यंत कमजोर हो जाती है।
संक्रमण के कारण
एचआईवी मुख्य रूप से निम्न तरीकों से फैलता है:
• असुरक्षित यौन संपर्क: एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ कंडोम का उपयोग न करने पर (विशेषकर गुदा या यौन संपर्क से) संक्रमण होने का खतरा रहता है।
• संक्रमित सुई-सीरिंज या उपकरण: इंजेक्शन लगाते समय पुरानी और साझा सुई-सीरिंज या नशे की सुई साझा करने से वायरस सीधे रक्त में पहुँच जाता है।
• संक्रमित रक्त या रक्त उत्पाद: एचआईवी परीक्षण नहीं किया हुआ संक्रमित रक्त चढ़ाने पर भी रोग फैल सकता है। इसलिए सरकारी अस्पतालों में एचआईवी जांच निशुल्क करवाई जाती है और प्रमाणित ब्लड बैंक से ही रक्त दिया जाता है।
• मां से शिशु में संक्रमण: गर्भावस्था, प्रसव या स्तनपान के दौरान संक्रमित माताओं से नवजात को भी एचआईवी हो सकता है।
ध्यान दें कि एचआईवी हथ मिलाने, गले मिलने, खांसने-छीकने, साझा बर्तनों, स्वच्छ पानी या कीड़ों के काटने से नहीं फैलता। यह एक भ्रान्ति है कि संक्रमित व्यक्ति के छूने से रोग फैल जाएगा।
बचाव के उपाय
एचआईवी से बचाव के लिए निम्न कदम बेहद महत्वपूर्ण हैं:
• सुरक्षित यौन संबंध: प्रत्येक यौन संपर्क में कंडोम का सही तरीके से उपयोग करें । यह एचआईवी सहित अन्य एसटीडी से बचाव में प्रभावी है।
• सुई-सीरिंज साझा न करें: अस्पताल और फार्मेसी से हमेशा नई, सीलबंद इंजेक्शन सुई-सीरिंज का उपयोग करें; नशे की सुई भी कभी साझा न करें।
• नियमित जांच: जोखिम वाले समूहों (जैसे कैब ड्राइवर, सेक्स वर्कर, इंजेक्शन ड्रग यूजर) को समय-समय पर एचआईवी जाँच करानी चाहिए। समय रहते जांच-इलाज से संक्रमण नियंत्रण में लाया जा सकता है।
• PrEP/PEP का उपयोग: जोखिम रहने पर PrEP (व्यवधान रोकथाम उपचार) या संभावित एक्सपोजर के बाद PEP लेना फायदेमंद है।
• माता-पिता का सावधान: गर्भवती महिलाओं की एचआईवी जांच कराने की व्यवस्था है। यदि माँ एचआईवी पॉजिटिव है तो समय पर एंटीरेट्रोवाइरल दवाएँ लेने और प्रसव के बाद दवा जारी रखने पर शिशु में संक्रमण के जोखिम को 1% से भी कम किया जा सकता है ।
सरकार ने देश भर में व्यापक एचआईवी जागरूकता अभियान चलाए हैं और सभी सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क जाँच की सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं।
उपचार और प्रबंधन
आज तक एचआईवी का कोई स्थायी इलाज नहीं है । एक बार शरीर में प्रवेश करने के बाद वायरस पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता। लेकिन एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (ART) के जरिए वायरस को नियंत्रित रखा जा सकता है। एआरटी में मरीजों को रोज़ाना या नियत अंतराल पर HIV-निरोधी दवाएँ दी जाती हैं ।
• नियमित ART लेने से शरीर में वायरल लोड (वीर्य भार) बेहद कम हो जाता है, कभी-कभी इतना कि परीक्षण में भी नहीं दिखता (undetectable viral load)। ऐसे लोगों से यौन माध्यम से वायरस दूसरे को नहीं फैलता (Undetectable = Untransmittable, U=U)। इससे मरीज लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकता है।
• भारत में एआरटी मुफ्त उपलब्ध है। 2025 तक 18 लाख से अधिक एचआईवी संक्रमितों को निःशुल्क ART दिया जा रहा है, 94% रोगियों में दवा लगातार जारी रखने की दर (retention) और 97% में वाइरल सप्रेशन हासिल हुई है।
• इलाज के किफायती जेनेरिक दवाओं के उत्पादन और समुदाय-आधारित सहयोग से भारत में परिणाम बेहतर हैं। 2010 में 1.73 लाख एचआईवी/एड्स से होने वाली मौतें घटकर 2024 में मात्र 32,200 रह गईं।
उचित चिकित्सा जारी रहने पर एचआईवी व्यक्ति से एड्स में उलझने का जोखिम बहुत कम हो जाता है । लेकिन यदि इलाज छूट जाए तो संक्रमण बढ़ता है और गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं।
गलतफहमियां और समाज पर प्रभाव
एचआईवी/एड्स को लेकर कई गलत धारणाएँ हैं, जिससे बचाव और इलाज में बाधाएँ आती हैं। सामाजिक कलंक इस बीमारी के साथ सबसे बड़ा मुद्दा है। बहुत से लोग बीमारी को लीलाज और लज्जास्पद मानते हैं, जिससे संक्रमित व्यक्ति को परिवार व समाज में छुपकर रहना पड़ता है । भ्रांतियाँ जैसे “एचआईवी सिर्फ समलैंगिकों या वेश्याओं को ही होता है” या “हाथ मिलाने, गले मिलने से भी AIDS फैल सकता है” बिल्कुल गलत हैं ।
वास्तव में एचआईवी सिर्फ यौन संबंध, संक्रमित खून या सुई से ही फैलता है, सामान्य सामाजिक संपर्क से नहीं। इन गलतफहमियों के कारण संक्रमण छिपाया जाता है, जांच-इलाज में देरी होती है और पीड़ित को मानसिक तनाव उठाना पड़ता है। वैज्ञानिक तथ्यों के प्रचार-प्रसार और समुदाय-आधारित कार्यक्रमों से इन भ्रांतियों को दूर किया जा सकता है। इसलिए सरकारी और सामाजिक संस्थाएं मिलकर सम्पूर्ण जानकारी फैला रही हैं ताकि लोग बिना डर-पाक से टेस्ट कराएं और जरूरत पड़ने पर इलाज भी लें।
डॉ. विद्यार्थी ने भी जोर देकर कहा कि जागरूकता ही सबसे बड़ा इलाज है । उन्होंने सभी से अपील की कि सचेत रहें, सुरक्षित यौन संबंध बनाएं, और नियमित रूप से एचआईवी परीक्षण करवाएं। स्वस्थ जीवनशैली, खुले संवाद और सरकारी कार्यक्रमों में भाग लेकर इस महामारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
योगी सरकार के बड़े फैसले: अयोध्या में वर्ल्ड-क्लास मंदिर संग्रहालय, खिलाड़ियों को ड्यूटी मान्यता



