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खिलौनों के साथ भारत का रचनात्मक रिश्ता उतना ही पुराना, जितना इस भू-भाग का इतिहास: पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भारत खिलौना मेला-2021 (इंडिया टॉय फेयर 2021) का उद्घाटन किया। इसका उद्देश्य सतत लिंकेज बनाने और उद्योग के समग्र विकास पर विचार-विमर्श करने के लिए एक ही प्लेटफॉर्म पर खरीददारों, विक्रेताओं, विद्यार्थियों, शिक्षकों, डिजाइनरों आदि सहित सभी हितधारकों को लाना है। इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से सरकार और उद्योग एक साथ विचार करेंगे कि कैसे भारत को खिलौना निर्माण और आउट सोर्सिंग का अगला वैश्विक हब बनाया जाए।

इंडिया टॉय फेयर में देशभर से आए 1000 से अधिक प्रदर्शक

सरकार और उद्योग मिलकर इस क्षेत्र में एक साथ काम कर रहे हैं। इंडिया टॉय फेयर में देशभर से 1000 से अधिक प्रदर्शक उत्पादों को प्रदर्शित करेंगे। इसमें परंपरागत भारतीय खिलौनों के साथ ही आधुनिक खिलौने दिखाए जाएंगे। गौरतलब हो बच्चों के मस्तिष्क विकास में खिलौने महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। पीएम ने पहले भी भारत में खिलौनों के उत्पादन को बढ़ाने पर बल दिया है। इस मेले का उद्देश्य एक ही मंच पर खरीददारों, विक्रेताओं, विद्यार्थियों को लाना है। यह मेला 27 फरवरी से 2 मार्च 2021 तक चलेगा।

अगस्त 2020 में “मन की बात” कार्यक्रम के माध्यम से टॉय इंडस्ट्री के विकास के लिए एक पीएम मोदी ने अलख जगाई

इस अवसर पर केंद्रीय वस्त्र और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने कहा- पीएम मोदी ने अगस्त 2020 में “मन की बात” कार्यक्रम के माध्यम से एक अलख जगाई। पीएम ने राष्ट्रभर से यह आह्वान किया कि देशभर में बन रहे खिलौना उद्योग को राष्ट्र के सभी नागरिक विशेषता हमारे छात्र, अध्यापकगण समर्थन करें। पीएम मोदी की प्रेरणा से ही शिक्षा मंत्रालय ने खिलौना उद्योग के समर्थन में राष्ट्र में पहली बार हैकथॉन का आयोजन किया। देशभर से 1 लाख 29 हजार छात्र स्टार्टअप्स, शैक्षिक संस्थान इस अभियान से जुड़े।

पीएम मोदी ने खिलौना कारीगरों से किया संवाद

कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने कर्नाटक के चन्नपटना शहर के खिलौना कारीगरों, जयपुर के कठपुतली बनाने वाले शिल्पकारों और कलाकारों व वाराणसी के खिलौना कारीगरों से संवाद किया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने राजस्थान के कठपुतली कारीगरों द्वारा खिलौनों की श्रेणी में ‘मास्क वाली कठपुतली’ बनाने बधाई भी दी। पीएम मोदी ने कार्यक्रम में संबोधन के दौरान कहा, हमारे देश की टॉय इंडस्ट्री में कितनी बड़ी ताकत छुपी है। इस ताकत को बढ़ाना, इसकी पहचान बनाना आत्मनिर्भर भारत अभियान का बहुत बड़ा हिस्सा है। यह हम सभी के लिए आनंद की बात है कि आज हम देश के टॉय फेयर की शुरुआत का हिस्सा बन रहे हैं।

देश की सदियों पुरानी खेल और उल्लास की संस्कृति को मजबूत करने की एक कड़ी है ‘इंडिया टॉय फेयर 2021’

ये पहला टॉय फेयर केवल एक व्यापारिक या आर्थिक कार्यक्रम भर नहीं है। ये कार्यक्रम देश की सदियों पुरानी खेल और उल्लास की संस्कृति को मजबूत करने की एक कड़ी है। मुझे बताया गया है कि इस कार्यक्रम की प्रदर्शनी में कारीगरों और स्कूलों से लेकर बहूराष्ट्रीय कंपनिया तक 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 1000 से अधिक एग्जीबीटर हिस्सा ले रहे हैं। आप सभी के लिए एक ऐसा मंच तैयार होने जा रहा है जहां आप खिलौनों के डिजाइन, इनोवेशन टेक्नोलॉजी से लेकर मार्केटिंग, पैकेजिंग तक पर चर्चा-परिचर्चा भी करेंगे और अपने अनुभव साझा भी करेंगे।

टॉय फेयर 2021 के दौरान आपके पास भारत में ऑनलाइन गेमिंग उद्योग और ई-स्पोर्ट्स उद्योग के ईको सिस्टम के बारे में जानने का अवसर होगा। मुझे ये देखकर भी अच्छा लगा कि यहां बच्चों के लिए ढेरों गतिविधियां रखी गई हैं। खिलौनों के साथ भारत का रचनात्मक रिश्ता उतना ही पुराना है जितना इस भू-भाग का इतिहास है। उन्होंने कहा सिंधुघाटी सभ्यता, मोहनजो-दारो और हड़प्पा के दौर के खिलौनों पर पूरी दुनिया ने रिसर्च की है। प्राचीन काल में दुनिया के यात्री जब भारत आते थे, तो भारत में खेलों को सीखते भी थे, और अपने साथ लेकर भी जाते थे।

दुनिया को भारत ने दिए अनेकों खेल

पीएम मोदी ने कहा आज जो शतरंज दुनिया में इतना लोकप्रिय है, वो पहले ‘चतुरंग या चादुरंगा’ के रूप में भारत में खेला जाता था। आधुनिक लूडो तब ‘पच्चीसी’ के रूप में खेला जाता था। हमारे धर्मग्रन्थों में भी आप देखिए, बाल राम के लिए अलग-अलग कितने ही खिलौनों का वर्णन मिलता है। गोकुल में गोपालकृष्ण घर के बाहर अपने मित्रों के साथ ‘कंदूक’ यानी बॉल से खेलने जाते थे। हमारे प्राचीन मंदिरों में भी खेलों के खिलौनों के शिल्प को उकेरा गया है। खासतौर से तमिलनाडु, चेन्नई में… अगर आप वहां मंदिरों को देखेंगे तो ऐसे कितने ही उदाहरण देखने को मिलेंगे कि मंदिरों में भी अलग-अलग खेल, खिलौने आज भी वहां दीवारों पर दिखती है।

खेल-खिलौने आस्था के केंद्रों का हिस्सा बन जाए तो इसका अर्थ है वो समाज खेलों के विज्ञान को गहराई से समझता है

किसी भी संस्कृति में जब खेल और खिलौने आस्था के केंद्रों का हिस्सा बन जाए तो इसका अर्थ है वो समाज खेलों के विज्ञान को गहराई से समझता है। हमारे यहां खिलौने ऐसे बनाए जाते थे जो बच्चों के चहुमुखी विकास में योगदान दें, उनमें एनालीटिकल माइंड विकसित करे। आज भी भारतीय खिलौने आधुनिक फैंसी खिलौनों की तुलना में कहीं सरल और सस्ते होते हैं। सामाजिक भौगोलिक परिवेश से जुड़े भी होते हैं।

भारतीय खिलौने प्राकृतिक और इको फ्रेंडली

पीएम ने कहा रीयूज़ और रिसाइक्लिंग जिस तरह भारतीय जीवनशैली का हिस्सा रहे हैं, वही हमारे खिलौनों में भी दिखता है। ज़्यादातर भारतीय खिलौने प्राकृतिक और इको फ्रेंडली चीजों से बनाते हैं, उनमें इस्तेमाल होने वाले रंग भी प्राकृतिक और सुरक्षित होते हैं। वाराणसी के लकड़ी के खिलौने और गुड़िया को देखिए, राजस्थान के मिट्टी के खिलौनों को देखिए, ऐसे ही पूर्वी मेदनीपुर की गलर गुड़िया है, कच्छ के कपड़ा, डिंगला और डिंगली है, आंध्र प्रदेश के इटिकोप्पक बुम्मलू और बुधनी के लकड़ी के खिलौने हैं और कर्नाटक के चन्नपटना खिलौने हैं, तेलंगाना के निर्मल खिलौने व चित्रकूट के लकड़ी के खिलौने हैं, धुबरी असम के टेराकोटा के खिलौने हैं। ये सब खिलौने कितनी अलग-अलग खूबियों से भरे हैं लेकिन इन सब में एक समानता यह भी है कि सभी खिलौने इको फ्रेंडली और क्रिएटिव हैं।

देश के युवा मन को हमारे इतिहास और संस्कृति से भी जोड़ते हैं भारतीय खिलौने

पीएम मोदी ने कहा, ये खिलौने देश के युवा मन को हमारे इतिहास और संस्कृति से भी जोड़ते हैं और सामाजिक मानसिक विकास में भी सहायक होते हैं। आज मैं देश के टॉय मैन्युफैक्चर्र्स से भी अपील करना चाहूँगा कि आप ऐसे खिलौने बनाएं जो इकोलॉजी और साइकोलॉजी दोनों के लिए ही बेहतर हों! क्या हम ये प्रयास कर सकते हैं कि खिलौनों में कम से कम प्लास्टिक इस्तेमाल करें? ऐसी चीजों का इस्तेमाल करें जिन्हें रिसाइकल कर सकते हैं। आज दुनिया में हर क्षेत्र में भारतीय दृष्टिकोण और भारतीय विचारों की बात हो रही है। भारत के पास दुनिया को देने के लिए एक यूनीक प्रस्पेक्टिव भी है। हमारी परम्पराओं में, परिधानों में, खानपान में हर जगह ये विविधता ताकत के रूप में नजर आती है। इसी तरह भारतीय टॉय इंडस्ट्री इस यूनिक प्रस्पेक्टिव को, भारतीय विचारबोध को प्रोत्साहित कर सकती है।

उन्होंने कहा, भारतीय खेल और खिलौनों की ये खूबी रही है कि उनमें ज्ञान होता है, विज्ञान भी होता है, मनोरंजन होता है और मनोविज्ञान भी होता है। उदाहरण के तौर पर लट्टू को ही लीजिये। जब बच्चे लट्टू से खेलना सीखते हैं तो लट्टू खेल खेल में ही उन्हें ग्रेविटी और बैलेंस का पाठ पढ़ा जाता है। वैसे ही गुलेल से खेलता बच्चा जाने-अनजाने में पोटेंशियल से काइनेटिक एनर्जी के बारे में बेसिक्स सीखने लगता है। पजल टॉय से रणनीतिक सोच और समस्या को सुलझाने की सोच विकसित होती है। इसी तरह, नवजात बच्चे भी झुनझुने और बाजे घुमा-घुमाकर सर्कुलर मूवमेंट को महसूस करने लगते हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्ले-आधारित और गतिविधि-आधारित शिक्षा को बड़े पैमाने पर शामिल किया गया है। ये एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था है जिसमें बच्चों में पहेलियों और खेलों के माध्यम से तार्किक और रचनात्मक सोच बढ़े, इस पर विशेष ध्यान दिया गया है।

खिलौनों के क्षेत्र में भारत के पास इतना कुछ

प्रधानमंत्री ने कहा, खिलौनों के क्षेत्र में भारत के पास ट्रेडिशन भी है और टेक्नोलॉजी भी है, भारत के पास कॉन्सेप्ट भी हैं, और कम्पीटेंस भी है। हम दुनिया को इको फ्रेंडली टॉय की ओर वापस लेकर जा सकते हैं, हमारे सॉफ्ट फेयर इंजीनियर कम्प्यूटर गेम्स के जरिए भारत की कहानियों को दुनिया तक पहुंचा सकते हैं।

देश ने खिलौना उद्योग को 24 प्रमुख क्षेत्रों में दर्जा दिया

पीएम मोदी ने कहा अब देश ने खिलौना उद्योग को 24 प्रमुख क्षेत्रों में दर्जा दिया है। नेशनल टॉय एक्शन प्लान भी तैयार किया गया है। इसमें 15 मंत्रालयों और विभागों को शामिल किया गया है ताकि ये उद्योग कम्पटीटिव बने, देश खिलौनों में आत्मनिर्भर बनें, और भारत के खिलौने दुनिया में भी जाएं। अगर आज ‘मेड इन इंडिया’ की डिमांड है तो आज हैंडमेड इन इंडिया की डिमांड भी उतनी ही बढ़ रही है। आज लोग खिलौनों को केवल एक प्रोडक्ट के रूप में ही नहीं खरीदते हैं बल्कि उस खिलौने से जुड़े अनुभव से भी जुड़ना चाहते हैं। इसलिए हमें हैंडमेड इन इंडिया को भी प्रमोट करना है।

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