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मेरठ के नत्थे सिंह के हाथों बना था आजाद भारत का पहला तिरंगा

नत्थे सिंह के हाथों बना था आजाद भारत का पहला राष्ट्रध्वज, आज 'हर घर तिरंगा' अभियान को सफल बनाने में जुटा है परिवार

मेरठ के झंडों की होती है देशभर में डिमांड.नत्थे सिंह का परिवार आज भी निभा रहा परंपरा.सरकार के मिशन ‘हर घर तिरंगा’ ने बढ़ाया रोजगार का अवसर.आजादी का अमृत महोत्सव मनाने की तैयारी जोरों पर.

मेरठ । देश की आन, मान और शान है तिरंगा। स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसबार 15 अगस्त को हर घर तिरंगा अभियान की अपील की है। प्रधानमंत्री की अपील के बाद यूपी की योगी सरकार इसे सफल बनाने में जी-जान से जुटी हुई है। आप को जानकर आश्चर्य होगा कि तिरंगे की रूपरेखा भले ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिंगली वेंकैया ने तैयार की थी, मगर आजाद भारत में राष्ट्रध्वज को अपने हाथों से तैयार करने वाले सबसे पहले व्यक्ति यूपी के नत्थे सिंह ही थे।

क्रांतिधरा मेरठ में बना था आज़ाद भारत का पहला तिरंगा

देशभर में आजादी के अमृत महोत्सव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। बात अगर देश की आजादी की आती है तो क्रांतिधारा मेरठ का नाम सबसे पहले आता है। देश की आजादी की क्रांति का बिगुल इसी धरा से फूंका गया था और आजादी के बाद पहला तिरंगा भी इसी क्रांतिधरा पर बनाया गया था।

नत्थे सिंह ने बनाया था आजाद भारत का पहला तिरंगा

1925 में जन्मे मेरठ के सुभाष नगर निवासी नत्थे सिंह ने आजाद भारत का पहला तिरंगा बनाया था। उस समय नत्थे सिंह की उम्र लगभग 22 वर्ष थी। उन्होंने तब से तिरंगा झंडा बनाने के काम को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। नत्थे के साथ उनका परिवार भी तिरंगा बनाने के काम में जुट गया। साल 2019 में नत्थे सिंह इसी राष्ट्रभक्ति के कार्य को संपादित करते हुए परलोक सिधार गए।

तिरंगा बनाने में जुटा है पूरा परिवार

नत्थे सिंह के निधन के बाद अब उनका बेटा रमेश चंद अपने परिवार सहित तिरंगा बनाने का काम कर रहे हैं। रमेश की पत्नी और दो बेटियां भी तिरंगा बनाने में हाथ बटाती हैं। कहती हैं कि हम अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं, क्योंकि आजाद भारत की शान तिरंगा बनाने का सौभाग्य सबसे पहले हमारे पिताजी (श्वसुर) को मिला और अब हम भी तिरंगा बनाकर देश की सेवा कर रहे हैं।

संसद में मीटिंग के बाद नत्थे सिंह के कंधे पर आयी जिम्मेदारी

नत्थे सिंह के बेटे रमेश ने याद करते हुए कहा कि उनके पिता ने बताया था कि जब देश आजाद हुआ और संसद भवन में मीटिंग हुई, उसके बाद क्षेत्रीय गांधी आश्रम मेरठ को पहली बार तिरंगा बनाने का काम सौंपा गया। यहां पर आजाद भारत के पहले राष्ट्रध्वज को बनाने की जिम्मेदारी नत्थे सिंह को ही दी गयी थी।

पड़ोसी ने दिया तेल तब लालटेन की रोशनी में बना तिरंगा

रमेश ने बताया कि उस समय हमारे घर में बिजली नहीं होती थी। हमारे घर पर्याप्त तेल भी नहीं था लालटेन जलाने के लिये। तब पिताजी (नत्थे सिंह) ने पड़ोसियों के घर से तेल मांगकर लालटेन जलायी, जिसकी रोशनी में झंडे बनाने का काम शुरू किया गया। वो दिन है और आज का दिन है मेरठ में तिरंगा बनाने का कारोबार काफी फला-फूला। आज देशभर में मेरठ के बने तिरंगे की काफी डिमांड रहती है। सरकारी कार्यालय हो या फिर प्राइवेट संस्थान, सभी पर मेरठ का बना तिरंगा ही फहरता है।

ढूंढे से भी नहीं मिल रहे तिरंगा कारीगर

पीएम की अपील और सीएम योगी के प्रयासों के फलस्वरूप प्रदेश में तिरंगा बनाने का काम जोरों पर चल रहा है। इससे झंडा बनाने वाले लोगों का रोजगार काफ़ी बढ़ गया है। इतना नहीं अब तो झंडा बनाने वाले ठेकेदारों को कारीगर मिलना भी मुश्किल हो गए हैं, क्योंकि झंडे की डिमांड ज्यादा है और बनाने वाले कारीगरों की संख्या बहुत कम है। इससे कम से कम ये तो साबित होता ही है कि अब राष्ट्रध्वज तिरंगे ने देश की शान के साथ-साथ लोगों के लिये रोजगार के अवसर को भी बढ़ा दिया है।

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