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कोरोना काल में प्रकृति के करीब आए लोग, ऑक्सीजन की कमी के बीच अचानक पेड़ लगाने की ओर बढ़ा रुझान

वैश्विक महामारी कोरोना ने हर किसी को तबाह कर दिया है। कोरोना की दूसरी लहर से देशभर में हड़कंप मचा हुआ है। शासन-प्रशासन के लोगों द्वारा कोरोना के कहर से बचाने के लिए हर संभव उपाय किए जा रहे हैं। लेकिन इन सारी कवायद के बीच कोरोना ने लोगों को बहुत कुछ सिखाया भी है।

दरअसल, इस बुरे वक्त ने लोगों को प्रकृति के करीब आने को मजबूर कर दिया है। असल में जिस चीज को लोगों ने बेकार समझना शुरू कर दिया था, अब उसी चीज के लिए मारामारी कर रहे हैं। लोगों की दिनचर्या तक बदल चुकी है। अब सुबह सात-आठ बजे तक सोने वाले लोग भी चार बजे उठ रहे हैं और पेड़-पौधा वाली जगहों पर परिक्रमा कर रहे हैं।

सांस भी खरीदनी पड़ी तो लोगों का रुझान अचानक पेड़ों की ओर गया

आज ऑक्सीजन के लिए हर ओर मारामारी हो रही है लेकिन हकीकत यही है कि ऑक्सीजन की कमी के लिए मनुष्य भी कम जिम्मेदार नहीं है। पेड़ बेहिसाब काटे गए लेकिन लगाए नहीं गए, अब जब सांस भी खरीदनी पड़ रही है तो लोगों का रुझान अचानक से पेड़ लगाने की ओर गया है।

भुला चुके थे जड़ी बूटियां, आज ऊंचे दामों पर भी खरीदने को तैयार हैं लोग

ऐसा ही हाल जड़ी बूटियों का भी है। प्राचीन समय से तमाम बीमारियों के इलाज के लिए रामबाण जड़ी बूटियों को लोगों ने भुला दिया था, उसे जंगल समझ कर बर्बाद कर रहे थे लेकिन जब कोरोना कहर बरपाने लगा तो उसी जंगल के लिए लोग जंगल-जंगल मारे फिर रहे हैं। नहीं मिल रहा है तो ऊंचे दामों पर खरीद रहे हैं।

इंटरनेट पर तमाम जड़ी-बूटियों पर खोज शुरू

इंटरनेट पर इनमिटी बूस्टप और वायरस जनित बीमारियों को दूर रखने वाले जड़ी-बूटियों की खोज हो रही है, आयुर्वेदिक तत्वों की खोज रहो रही है। बेड पर चाय-कॉफी से दिन की शुरुआत करने वाले लोग काढ़ा पी रहे हैं और वह काढ़ा, जिसमें कोई केमिकल नहीं, सिर्फ प्राकृतिक चीजें हैं।

गिलोय की बढ़ी मांग, दो सौ रुपये किलो तक बेचा जा रहा

काढ़ा के बढ़े डिमांड को लेकर सबसे अधिक मांग गिलोय (गूरीच) की हो रही है। गांव के पेड़ पौधे और जंगलों पर जब बड़ी मात्रा में गिलोय होता था। लेकिन आधुनिक मनुष्यों ने उसे काट कर फेंकना शुरू कर दिया। जब कोरोना वायरस आया तो गिलोय की जोर-शोर से तलाश हो रही है और व्यापारी दो सौ रुपये किलो बेच रहे हैं। दो सौ रुपये किलो में भी बहुत स्कार्सिटी हो रही है।

गरीब लोगों के लिए महंगी जड़ी-बूटियां हुई दूर की चीज

पैसे वाले तो किसी तरह खरीद रहे हैं, लेकिन गरीब लोग जंगलों का चक्कर लगाते हुए खोज कर ला रहे हैं और सपरिवार काढ़ा पी रहे हैं। गिलोय के बारे में कहा जाता है कि देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला और इस अमृत की बूंदें जहां-जहां छलकीं, वहां-वहां गिलोय की उत्पत्ति हुई। सौ मर्ज की एक दवा गिलोय को संस्कृत में “अमृता” नाम दिया गया है।

गिलोय एक ऐसी बेल है, जो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर उसे बीमारियों से दूर रखती है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करते हैं। यह खून को साफ करती है, बैक्टीरिया से लड़ती है। लिवर और किडनी की अच्छी देखभाल भी गिलोय के बहुत सारे कामों में से एक है।

हर तरह के बुखार से लड़ने में मदद करती है गिलोय

अगर किसी को बार-बार बुखार आता है तो उसके लिए गिलोय का सेवन अचूक उपाय है। गिलोय हर तरह के बुखार से लड़ने में मदद करती है। इसलिए डेंगू के अलावा मलेरिया, स्वाइन फ्लू में आने वाले बुखार से भी गिलोय छुटकारा दिलाती है।

यही हाल जंगली जिलेबी का है। इंटरनेट से जब पता चला कि जंगली जिलेबी (पेड़ पर फलने वाला) इम्यूनिटी बूस्टप करता है। वायरस खत्म करता है, कैंसर के लिए रामबाण है, चर्म रोग और पेट के लिए भी बहुत अधिक गुणकारी है। इसके बाद अचानक जंगली जिलेबी की डिमांड बढ़ गई और यह जिलेबी आज दो सौ रुपये किलो भी नहीं मिल रहा है। लोग हैरान हैं, परेशान हैं, कुल मिलाकर कहा जाय तो कोरोना ने बहुत कुछ सिखा दिया। बता दिया कि प्रकृति से जुड़ कर रहो, प्रकृति में वह सब कुछ है जो आज के भागम-भाग वाले युग के लिए सबसे बड़ी जरूरत है।

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