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सरकार ने एनएटीएस के तहत प्रशिक्षुओं को तीन हजार करोड़ की वृत्तिका सहायता की मंजूरी दी

सरकार ने शिक्षा मंत्रालय की राष्‍ट्रीय शिक्षुता प्रशिक्षण योजना (एनएटीएस) के तहत पांच वर्ष अवधि के लिए अप्रेंटिसशिप प्रशिक्षण प्राप्‍त करने वाले प्रशिक्षुकों को तीन हज़ार करोड़ रुपये की वृत्तिका सहायता देने के लिए अपनी मंजूरी दी है।प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने बुधवार को इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी।शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक 2021-22 से 2025-26 तक (31 मार्च 2026 तक) की अवधि के लिए उद्योग और वाणिज्यिक संगठनों द्वारा लगभग नौ लाख प्रशिक्षुकों को प्रशिक्षित किया जाएगा।एनएटीएस भारत सरकार की एक सुस्थापित योजना है, जिसने सफलतापूर्वक अप्रेंटिसशिप प्रशिक्षण प्राप्‍त करने वाले छात्रों की रोजगार क्षमता को बढ़ाने में योगदान दिया है।

इंजीनियरिंग, मानविकी, विज्ञान और वाणिज्य में स्नातक और डिप्लोमा कार्यक्रम पूरा करने वाले प्रशिक्षुकों को नौ हजार रुपये और आठ हजार रुपये प्रति माह की वृत्तिका दी जाएगी।सरकार ने अगले पांच वर्षों के लिए तीन हज़ार 54 करोड़ रुपये से अधिक के व्‍यय को मंजूरी दी है, जो पिछले पांच वर्षों के दौरान किए गए व्यय से लगभग साढ़े चार गुना अधि‍क है। अप्रेंटिसशिप में यह बढ़ा हुआ व्‍यय राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा अप्रेंटिसशिप को दिए गए महत्‍व के अनुरूप है।सरकार द्वारा दिए जा रहे जोर को ध्यान में रखते हुए इंजीनियरिंग स्ट्रीम के छात्रों के अलावा मानविकी, विज्ञान और वाणिज्य के छात्रों को भी इस योजना में शामिल करने के लिए एनएटीएस के दायरे का और विस्तार किया गया है।

इस योजना का उद्देश्य कौशल इको-सिस्‍टम को मजबूत करते हुए कौशल स्तर के मानकों में बढ़ोतरी करना है, जिसके परिणामस्वरूप यह योजना अगले पांच वर्षों में लगभग सात लाख युवाओं को रोजगार उपलब्‍ध कराएगी।एनएटीएस उत्‍पादन से जुड़े प्रोत्‍साहन (पीएलआई) के तहत मोबाइल विनिर्माण, चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, फार्मा क्षेत्र, इलेक्ट्रॉनिक्स/प्रौद्योगिकी उत्पाद, ऑटोमोबाइल क्षेत्र जैसे उभरते क्षेत्रों में अप्रेंटिसशिप उपलब्‍ध कराएगी। यह योजना ‘गतिशक्ति’ के तहत पहचान किए गए कनेक्टिविटी/लॉजिस्टिक उद्योग क्षेत्रों के लिए कुशल मानवशक्ति भी तैयार करेगी।

सरकार ने ओ स्मार्ट योजना को अगले पांच वर्षों तक जारी रहने की दी मंजूरी

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने आज पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय की 2,177 करोड़ रुपए की लागत वाली अम्ब्रेला योजना “समुद्री सेवाएं, मॉडलिंग, अनुप्रयोग, संसाधन और प्रौद्योगिकी (ओ-स्मार्ट)” को 2021-26 की अवधि के दौरान जारी रखने की मंजूरी दे दी है।इस योजना में सात उप-योजनाएं शामिल हैं, जिनमें समुद्री प्रौद्योगिकी, समुद्री मॉडलिंग और परामर्श सेवाएं (ओएमएएस), समुद्री अवलोकन नेटवर्क (ओओएन), समुद्री निर्जीव (गैर सजीव) संसाधन, समुद्री सजीव संसाधन एवं इको-सिस्टम (एमएलआरई), तटीय अनुसंधान एवं अनुसंधान पोतों का संचालन और रख-रखाव हैं।

इन उप-योजनाओं को राष्ट्रीय समुद्री प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी), चेन्नई, भारतीय राष्ट्रीय समुद्री सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस), हैदराबाद, राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), गोवा, समुद्री सजीव संसाधन एवं इकोलॉजी केंद्र (सीएमएलआरई), कोच्चि, और राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (एनसीसीआर), चेन्नई जैसे मंत्रालय के स्वायत्त/संबद्ध संस्थानों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। साथ ही, इस कार्य में अन्य राष्ट्रीय संस्थानों को भी शामिल किया जाता है। इस योजना के लिए मंत्रालय का समुद्र विज्ञान और तटीय अनुसंधान पोतों का एक बेड़ा अनुसंधान कार्य में आवश्यक सहायता प्रदान करता है।

भारत में महासागरों से संबंधित अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी के विकास की शुरुआत महासागर विकास विभाग (डीओडी) द्वारा शुरू की गई थी, जिसे 1981 में स्थापित किया गया था। इसे बाद में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में मिला दिया गया और तब से यह कार्य निरंतर चल रहा है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने राष्ट्रीय लाभ के लिए प्रौद्योगिकी विकास, पूर्वानुमान सेवाओं, क्षेत्र प्रतिष्ठानों, अन्वेषणों, सर्वेक्षण, प्रौद्योगिकी प्रदर्शनों के माध्यम से समुद्र विज्ञान अनुसंधान में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है।

हमारे महासागरों के निरंतर अवलोकन, प्रौद्योगिकियों के विकास तथा हमारे समुद्री संसाधनों (सजीव और निर्जीव दोनों) के दोहन के लिए और समुद्र विज्ञान में अग्रणी अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए अन्वेषी सर्वेक्षणों के आधार पर सतत पूर्वानुमान और सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्र विज्ञान अनुसंधान गतिविधियों को शामिल करते हुए ओ-स्मार्ट योजना को लागू किया जा रहा है।यह योजना अगले पांच वर्षों (2021-26) में समुद्री क्षेत्र के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी उपयोग करके, विभिन्न तटीय हितधारकों के लिए पूर्वानुमान और चेतावनी सेवाएं प्रदान करके, समुद्री जीवन के लिए संरक्षण रणनीति की दिशा में जैव विविधता को समझने तथा तटीय प्रक्रिया को समझने की दिशा में चल रही गतिविधियों को मजबूत करने के लिए योजना व्यापक कवरेज प्रदान करेगी।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने “ एक्रॉस” की समग्र योजना को 2021-2026 तक जारी रखने की मंजूरी दी

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने “वायुमंडल और जलवायु अनुसंधान-मॉडलिंग प्रेक्षण प्रणाली एवं सेवाओं (एक्रॉस) की समग्र योजना को उसकी आठ उप-योजनाओं के साथ कुल 2,135 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 2021-2026 के वित्तीय चक्र तक जारी रखने को अपनी मंजूरी दे दी है।यह योजना पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) द्वारा भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ), भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) और भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस) जैसी इकाइयों के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही है।

एक्रॉस योजना, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के वायुमंडलीय विज्ञान कार्यक्रमों से संबंधित है और यह मौसम एवं जलवायु से जुड़ी सेवाओं के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देती है। इनमें से प्रत्येक पहलू को “एक्रॉस” की समग्र योजना के तहत आठ उप-योजनाओं के रूप में शामिल किया गया है और इनका कार्यान्वयन उपरोक्त चार संस्थानों के माध्यम से एकीकृत तरीके से किया जाता है।एक्रॉस योजना के तहत आने वाली आठ उप-योजनाएं अपनी प्रकृति में बहुआयामी हैं और उन्हें मौसम एवं जलवायु के सभी पहलुओं को कवर करने के लिए आईएमडी, आईआईटीएम, एनसीएमआरडब्ल्यूएफ और आईएनसीओआईएस के माध्यम से एकीकृत तरीके से लागू किया जाएगा।

निम्नलिखित आठ योजनाओं के माध्यम से उपरोक्त कार्यों को पूरा करने में इनमें से प्रत्येक संस्थान की एक निर्दिष्ट भूमिका है।यह योजना बेहतर तरीके से मौसम, जलवायु एवं समुद्र के बारे में पूर्वानुमान एवं सेवाएं और अन्य जोखिम संबंधी सेवाएं प्रदान करेगी ताकि अंतिम उपयोगकर्ता को सार्वजनिक मौसम सेवा, कृषि-मौसम विज्ञान सेवाओं, विमानन सेवाओं, पर्यावरण निगरानी सेवाओं, जल-मौसम विज्ञान सेवाओं, जलवायु सेवाओं, पर्यटन, तीर्थयात्रा, बिजली उत्पादन, जल प्रबंधन, खेल और रोमांच आदि से संबंधित लाभ पर्याप्त रूप से सुनिश्चित हो। पूर्वानुमान से जुड़ी सूचनाओं को तैयार करने से लेकर इनके वितरण तक की पूरी प्रक्रिया में हर स्तर पर काफी संख्या में श्रमशक्ति की जरूरत होती है, जिससे कई लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।

दादरा और नगर हवेली में बिजली वितरण निजीकरण के लिए न्यास के गठन को मंजूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव में बिजली वितरण कारोबार के निजीकरण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए एक न्यास का गठन करने को आज मंजूरी दे दी।यह न्यास कंपनी के गठन, उच्चतम बोली लगाने वाले को नवगठित कंपनी के इक्विटी शेयर की बिक्री एवं कर्मचारियों की देनदारियों को पूरा करने का काम करेगा।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय से संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी।बिजली वितरण के निजीकरण से केन्द्र शासित प्रदेश के करीब डेढ लाख उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा मिलेगी तथा वितरण और परिचालन में सुधार के साथ कार्य कुशलता भी बढेगी।

इससे अन्य राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेश को इस बारे में मॉडल भी मिलेगा। इस निर्णय से प्रतिस्पर्धा में वृद्धि होगी, बिजली उद्योग को मजबूती मिलेगी एवं बकाया धनराशि की वसूली में भी मदद मिलेगी।सरकार ने पिछले वर्ष मई में संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की घोषणा की थी। सुधार के प्रमुख उपायों में एक बिजली वितरण सेवा प्रदाता कंपनियों के निजीकरण के माध्यम से केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण और खुदरा आपूर्ति में सुधार करना भी था ताकि बिजली वितरण में निजी क्षेत्र की दक्षता का लाभ उठाया जा सके।इसके तहत एक वितरण कंपनी यानी डीएनएच-डीडी पावर डिस्ट्रीब्यूशन कॉरपोरेशन लिमिटेड को पूर्ण स्वामित्व वाली सरकारी कंपनी के रूप में निगमित किया जाएगा और नवगठित कंपनी में स्थानांतरित कर्मियों के सेवा-लाभों के प्रबंधन के लिए ट्रस्ट (ट्रस्टों) का गठन किया जाएगा। दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव विद्युत (पुनर्गठन एवं सुधार) स्थानान्तरण योजना, 2020 के अनुसार नवगठित कम्पनी में सम्पत्तियों, दायित्वों, कार्मिकों आदि का स्थानान्तरण किया जायेगा।

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