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छत्तीसगढ़ के इन जिलों में वायु गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं

जहाँ एक और लगातार तमाम सरकारें और प्रशासन वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रयासरत हैं, वहीँ प्राक्रतिक संसाधनों से समृद्ध, छत्तीसगढ़ में यह प्रयास रंग लाते नहीं दिखतेI

राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र (SHRC), छत्तीसगढ़ द्वारा “राज्य जलवायु परिवर्तन, मानव स्वास्थ्य एवं स्वस्थ ऊर्जा” पहल के राष्ट्रीय कार्यक्रम के सहयोग से किए गए एक अध्ययन के अनुसार नवंबर 2020 और जून 2021 के बीच रायपुर और कोरबा में वायु गुणवत्ता मानको के अनुरूप नही पाई गयीI कोरबा के कई क्षेत्रों में पीएम 2.5 राष्ट्रीय मानक स्तर (60 ug/m3 ) से लगभग अट्ठाईस गुना और रायपुर में लगभग ग्यारह गुना ज्यादा पाया गया। इस अध्ययन की समीक्षा पं. ज.ने. स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़, के डॉ. कमलेश जैन, प्रोफेसर, सामुदायिक चिकित्सा विभाग, द्वारा किया गयाI

वायु प्रदूषण एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा हैI वायु की गुणवत्ता में सुधार और स्वास्थ्य में इसके प्रभाव को कम करने की जरुरत है और इस चुनौती से निपटने के लिए विभिन्न विभागों को समन्वित तरीके से काम करने की आवश्यकता है। रायपुर और कोरबा से प्राप्त हवा के नमूने के निष्कर्ष स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से चिंताजनक हैं। इसके लिए न केवल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मजबूत हस्तक्षेप की आवश्यकता है परन्तु इसके लिए लोगों की सुरक्षा और वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के हस्तक्षेप की भी आवश्यकता है। डॉ नीरज कुमार बनसोड, स्वास्थ्य सेवा निदेशालय, के अनुसार, “हम वायु प्रदूषण से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का निदान करने के लिए उपयुक्त उपकरण एवं प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की सेवाओं के द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

“हवा के नमूनों के परिणाम चिंताजनक हैं, इसमें पाए गये हानिकारक पदार्थों का स्तर बहुत ज्यादा हैं जो की स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि PM का स्तर अगर 2.5 या उससे ज्यादा है तो उसका सीधा असर फेफड़े (Lungs) और हृदय (Heart) पर पड़ता है। इसके अलावा,मैंगनीज, सीसा और निकल वातावरण में मानको से अधिक पाए जाने पर हानिकारक असर डालते हैं और मानव स्वास्थ्य पर उनके प्रभावों का पूर्व में अन्य शोधो में उल्लेख है। मैंगनीज और सीसा न्यूरोटॉक्सिन हैं जबकि निकल एक कार्सिनोजेन है। मानव घरों और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की छतों से जहरीले पदार्थों के ऐसे उच्च स्तर की खोज चिंता का एक वास्तविक कारण है” – राज्य नोडल अधिकारी-स्वास्थ्य (जलवायु परिवर्तन एवं जन स्वास्थ्य).

“लोगों ने इस अध्ययन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया है जो इस मुद्दे के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है । हवा में ऐसे विषाक्त पदार्थों की उपस्थिति को कम करने के लिए न केवल तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है परन्तु यह आकलन करने की भी आवशयकता है की पहले से ही कितना नुकसान हो चुका है, इसके साथ एक व्यापक स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराया जाये जिससे शुरू से अब तक के दीर्घकालिक नुकसान का पता लगाया जा सके, डॉ समीर गर्ग, अधिशासी निदेशक, एसएचआरसी.

‘’रायपुर और कोरबा से वायु के नमूनों के परिणाम बताते हैं कि इस क्षेत्र में पिछले दो वर्षों की अवधि में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब स्तर पर पहुंच गई है। ये नमूने नवंबर 2020 और मई 2021 के बीच, COVID-19 की पहली और दूसरी लहर के दौरान लिए गए थे और जब देश में कुल या आंशिक लॉकडाउन था और कई शहर नीले आसमान और बर्फ से ढके पहाड़ों को देख रहे थे, कोरबा और रायपुर के निवासी कोयला संयंत्र केंद्रों के आसपास ख़राब हवा के बीच जीवित रहने एवं अपनी दिनचर्या जारी रखने के लिए मजबूर थेI इन शहरों में रहने वाले निवासियों की गवाही से इसकी पुष्टि होती है। अन्य स्थानों के विपरीत कोरबा और रायपुर में वायु प्रदूषण साल भर की समस्या है,” पुनीता कुमार, अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ताI

जाँच – परिणाम

– नवंबर 2020 से मई 2021 तक रायपुर से हवा के 12 सैंपल लिए गएI

– मार्च 2021 से जून 2021 के बीच कोरबा से 14 हवा के नमूने लिए गए।

कुछ प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

प्रदूषक जाँच – परिणाम प्रदूषक का स्वास्थ्य प्रभाव
PM2.5 रायपुर के सभी नमूनों में PM2.5 का स्तर 131.4 से 653.8μg/m3 के बीच था और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) (60μg/m3) द्वारा निर्धारित मानकों से 2.18 और 10.88 गुना अधिक था। PM2.5 आसानी से स्वास नाली में चला जाता है; फेफड़ों की एल्वियोली में प्रवेश कर संचार प्रणालियों में प्रवेश करता हैं और मनुष्यों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालता है। पिछले अध्ययनों ने साबित किया है कि PM2.5 के कारण लोगों में सांस की बीमारी, हृदय रोग, स्ट्रोक और मानसिक प्रभाव पड़ता हैं। अनुसंधान ने यह भी साबित किया है कि पीएम 2.5 (placental barrier) को पार करता है और इसके परिणामस्वरूप नवजात शिशुओं में जन्म दोष उत्पन्न कर सकता है।
कोरबा से लिए गये सभी नमूनों में PM 2.5 का स्तर MoEFCC की निर्धारित सीमा से 2.5 से 28.3 गुना अधिक था। वायु के सभी नमूनों में pm २,५ का स्तर अधिक पाया गया जो की वह के लोगो के स्वास्थ्य में दुष्प्रभाव डाल सकता है।
सिलिका रायपुर और कोरबा के सभी नमूनों में क्रिस्टलीय सिलिका का स्तर ऊंचा देखा गया। कोयला राख और निर्माण कार्य में उपयोग होने वाले रेत दोनों में क्रिस्टलीय सिलिका के उच्च स्तर होते हैं। सिलिका के संपर्क से सिलिकोसिस नामक फेफड़ों की बीमारी होती है। आम तौर पर श्रमिक और स्थानीय आबादी जो लंबे समय तक सिलिका के संपर्क में रहते हैं, उन्हें श्वसन संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। सूक्ष्म सिलिका कण आसानी से फेफड़ों में प्रवेश कर सकता है, और फेफड़ों को ख़राब करता है। जिसे सिलिकोसिस कहा जाता है। सिलिका के संपर्क में आने से फेफड़ों का कैंसर, गुर्दे की बीमारियां और मांसपेशियों से सम्बंधित समस्याएं भी हो सकती हैं ।
निकल रायपुर के साथ-साथ कोरबा के सभी नमूनों में निकल का स्तर WHO के वार्षिक स्वास्थ्य-आधारित दिशानिर्देश मानक 0.0025μg/m3 से अधिक है, निकल के दीर्घकालिक असर से कैंसर की सम्भावना होती है। वायु में निकल के संपर्क में आने से शरीर में श्वसन और प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) प्रभावित होती है। निकल के लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर का खतरा होता है।
सीसा रायपुर से 12 नमूनों में से छह नमूने सीसा के उच्च स्तर (Pb) को दिखाते हैं, जिसे यूएस EPA मानक 0.15μg/m3 के साथ तुलना की जाती है, जो औसतन तीन महीने के लिए होता है। सीसा एक ज्ञात न्यूरोटॉक्सिन है। बच्चे इस भारी धातु के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। शिशुओं में सीसे के निम्न स्तर के एक्सपोजर को IQ, सीखने, स्मृति और व्यवहार पर प्रभाव से जोड़ा गया है। जब कोई

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