Varanasi

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी प्रख्यात चिंतक, विचारक, शिक्षाविद एवं महान देशभक्त थे: डॉ सुधांशु त्रिवेदी

भारत के एकीकरण के लिए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दिया अपने प्राणों का बलिदान: डॉ सुधांशु त्रिवेदी.भारत के राजनैतिक राजधानी का नेतृत्व देश की सांस्कृतिक राजधानी के प्रतिनिधि नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं.

वाराणसी : डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक प्रख्यात चिन्तक, विचारक, शिक्षाविद और महान देशभक्त थे। डा. मुखर्जी ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत करने के लिए लगा दिया। जिस जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने और वहां जाने के लिए परमिट व्यवस्था का डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने विरोध किया था।उनकी लड़ाई को भाजपा ने आगे बढाया। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को धारा 370 को खत्म कर एक निशान, एक विधान और एक प्रधान के नारे को स्थापित किया।उक्त बातें भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं राज्य सभा सांसद डॉ सुधांशु त्रिवेदी ने भाजपा महानगर एवं जिला द्वारा जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ स्थित गांधी अध्ययन पीठ सभागार में आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कही।

डॉ सुधांशु त्रिवेदी ने आगे कहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की जयंती पर हम सब यहाँ एकत्रित हुए हैं। कहा कि कई बार देश के इतिहास में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जहां पर वह परिवर्तन इतिहास को निर्णायक रूप में प्रतिस्थापित कर देता है। उदाहरण के लिए ज़ब हमें स्वतंत्रता मिली तो कश्मीर का विषय एक ऐसा विषय था कि आजादी के बाद सभी रियासतों का विलय हो गया था लेकिन सिर्फ एक रियासत रह गयी। रियासतों को विलय करने का जिम्मा सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास था। सिर्फ एक रियासत पंडित जवाहर लाल नेहरू के पास थी और उसी में पेंच फंस गया। वह बड़ी चुनौती बन गई जो 2019 तक बनी रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में निर्णायक समाधान हुआ। हम मजबुत राष्ट्र होते हुए भी पडोसी हमें सताता रहा। मजबूत राष्ट्र होते हुए भी संयुक्त राष्ट्र में जाकर युद्ध विराम के लिए भारत गुहार लगाने पहुंच गया। फ़ौज जीत रही थी। यह इतिहास की बड़ी भूल थी। ज़ब भारत स्वतंत्र हुआ तब सेनाध्यक्ष अंग्रेज था। 1954 तक भारत कि वायु सेना का अध्यक्ष अंग्रेज ही रहा। वे 1957 तक भी बने रहे।

इसके बाद भी नेहरू संयुक्त राष्ट्र संघ तक चले गए। तब नेहरू सरकार ने ही कहा था कि बचे हुए मसले को सुलझाने के लिए उन्हें यहां के जिम्मेदार पदों पर रखा गया हा तो इस मसले को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र क्यों गए। गवर्नर जनरल माउन्ट बेटन भी तो यही थे। पाकिस्तान में भी अंग्रेज अफसर थे तो यहां क्यों उन्हें बैठाया गया था। कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री व जस्टिस मेहर चंद्र महाजन ने अपनी किताब लुकिंग बैक में लिखा है कि कश्मीर भारत के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन गया था और यह सब शेख अब्दुल्लाह के लिए पंडित नेहरू ने किया। यह सब देखकर श्याम प्रसाद मुख़र्जी को बहुत कष्ट था। कहा कि कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल छह साल का होता था। उसे अधिकार मिला था कि भारत की संसद में पास प्रस्ताव तब तक वहाँ लागु नहीं होगा ज़ब तक विधानसभा उसे अंगीकार नहीं कर ले। इमरजेंसी के दौरान ज़ब पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने लोकसभा व विधानसभा का कार्यकाल छह साल कर दिया तो तुरंत वहाँ की विधामसभा ने अंगीकार कर लिया जो लम्बे समय तक चलता रहा।

मोरारजी देसाई की सरकार ने ज़ब उसे वापस लिया तो कश्मीर की विधानसभा ने उसे अंगीकार नहीं किया। कश्मीर की विधानसभा ने धर्मनिरपेक्ष व समाजवाद को भी कभी अंगीकार नहीं किया। डा. मुख़र्जी की मृत्यु पर आज भी सवाल अनसुलझे हैं। वहाँ जाने के लिए परमिट लगता था। बिना परमिट के श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जाने दिया गया। उनको अवैध तरीके से प्रवेश के लिए नहीं बल्कि शांति व्यवस्था ख़राब होने की आशंका में गिरफ्तार किया गया। इस दौरान पंडित नेहरू कश्मीर भी गए। उन्होंने एक बार भी उनका हालचाल नहीं लिया। रहस्यमय परिस्थिति में 23 जून 1953 को उनकी मौत हो गई। उनको क्या दवा दी जा रही थी वह सलाह का पर्चा भी गायब हो गया। उन्होंने अपने रक्त से उसे सिंचित किया। उनकी माता ने नेहरू को जाँच के लिए पत्र लिखा। उन्होंने शेख अब्दुला से प्रेस को ब्रिफ करने के लिए कहा। कांग्रेस के सांसद विधानचंद्र राय ने भी जाँच की मांग की।

नेहरू जी ने इस मामले में कई प्रकार के बयान दिए जो संदेह पैदा करता है। कश्मीर में वाल्मीकि समाज के लिए सबसे बड़ा अन्याय था। पीएचडी करने के बाद भी सफाई कर्मी की नौकरी मिलती थी। उस राज्य में आरक्षण था ही नहीं। 26 जनवरी व 15 अगस्त को भी वहाँ राज्यपाल तिरंगा नहीं फहरा सकते थे। अटल जी कि सरकार में पहली बार तिरगा फहराया जा सका। देश के हर कोने में धमाके होते थे। अब सिमट के कश्मीर के कुछ जिलों में होकर रह गया है। इसके बाद भी कुछ लोग कहते हैं भारत में डर लगता है। तब वे नहीं डरते थे ज़ब विस्फोट होते थे। इस चुनाव में विदेशी ताकतों ने भाजपा को हराने के लिए लगी थी।

डॉ सुधांशु त्रिवेदी ने आगे कहा कि पीएम मोदी ने कहा है कि आगामी 25 साल अमृत काल है। बिता 10 साल उषा काल है। यह विकसित भारत का निर्माण काल है। जो राम का सबूत मांगते थे वे आज राम के स्थानों को बताते हुए भाजपा के हार की गिनती कर रहे हैं। यह भी जान ले कि भगवान् राम को भी एक बार नागपाश लगा था‌। कहा कि उत्तर प्रदेश में दो लड़के चुनाव लड़े थे. छोटा लड़का यूपी में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन सदन में नेता प्रतिपक्ष भी नहीं बन पाया. वह बड़े लडके के पीछे बैठने को मजबूर हो गए. यहां होते तो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष होते. पीएम ने सदन में सही कहा कि कांग्रेस परजीवी हो गई। केरल, महाराष्ट्र, यूपी जैसे प्रदेश में क्षेत्रीय दलों के बल पर सीटें जीती. यूपी में तो सपा का वोट तो कांग्रेस को ट्रांसफर हो गया लेकिन कांग्रेस का वोट सपा को ट्रांसफर नहीं हुआ. यही वजह है कि अखिलेश अपने खानदानी सीट से करीब 78 हजार मतों से जीते जबकि रायबरेली में राहुल तीन लाख से अधिक मतों से जीते. यह बात सपा को समझ लेनी चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो.कृपा शंकर जायसवाल ने की। स्वागत भाषण जिलाध्यक्ष व एमएलसी हंसराज विश्वकर्मा,धन्यवाद ज्ञापन प्रो.के.के.सिंह तथा संचालन डॉ सुनील मिश्रा ने किया।

इनकी रही उपस्थिति

संगोष्ठी में राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार रविन्द्र जायसवाल, महापौर अशोक तिवारी, जिलाध्यक्ष व एमएलसी हंसराज विश्वकर्मा,महानगर अध्यक्ष विद्यासागर राय, जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्या, विधायक नीलकंठ तिवारी,सौरभ श्रीवास्तव, विधान परिषद सदस्य धर्मेंद्र राय, पूर्व विधायक सुरेंद्र नारायण सिंह औढ़े, प्रदेश मंत्री शंकर गिरी, क्षेत्रीय मीडिया प्रभारी नवरतन राठी,शिवशरण पाठक,सह मीडिया प्रभारी संतोष सोलापुरकर, नवीन कपूर जगदीश त्रिपाठी, संजय सोनकर, प्रवीण सिंह गौतम, शेलेंद्र मिश्रा, आत्मा विश्वेश्वर, मधूकर चित्रांश, ई अशोक यादव, सुरेश सिंह, महानगर अध्यक्ष महिला मोर्चा कुसुम सिंह पटेल, साधना वेदांती, रचना अग्रवाल, सहित अनेकों कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता उपस्थित रहे।

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