चैत्र रामनवमी पर विशेष-हर रूप में आदर्श राम के चरित्र का वर्णन भाषा और मजहब से परे
मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया, बुद्धिष्ट देश श्रीलंका और थाइलैंड में भी है राम की स्वीकार्यता.मॉरीशस, सूरीनाम और त्रिनिदाद में गिरमिटियों के संग पहुंचे राम वहीं के हो गये.
- गिरीश पांडेय
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।
यह है देश और दुनिया के करोड़ों हिंदुओं के आराध्य प्रभु श्रीराम की स्वीकार्यता। रही राम नाम के महिमा की बात तो इस बाबत राम चरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि “कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥”
श्रीराम की इस व्यापकता का सबूत देश-दुनिया में होने वाली मैदानी, मंचीय और सचल रामलीलाएं हैं। दरअसल परिवार, समाज और प्रजा के लिए पुत्र, भाई, पति, राजा और पिता के रूप में श्रीराम का चरित्र इतना आदर्श है कि कोई समाज इसकी अनदेखी कर ही नहीं सकता है। यही वजह है कि भाषा और मजहब की सारी हदों से परे आज भी दुनिया के कई देशों में राम आराध्य के रूप में प्रभावी तरीके से मौजूद हैं। वहां की रामलीलाओं के मंचन में यह दिखता भी है।
हरि अनंत, हरि कथा अनंता
मसलन 86 फीसद मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया और अंग्रेजी भाषी त्रिनिदाद में भी रामलीलाओं का मंचन होता है। बुद्धिष्ट देश श्रीलंका, थाइलैंड और रूस भी इसके अपवाद नहीं हैं। अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित माउंट मेडोना स्कूल में पिछले 40 वर्षों से जून के पहले हफ्ते में रामलीला का मंचन होता है। आजादी के पहले पाकिस्तान स्थित कराची के रामबाग की रामलीला मशहूर है। अब इसका नाम आरामबाग है और मैदान की जगह कंक्रीट के जंगल हैं। मान्यता है कि सीता के साथ शक्तिपीठ हिंगलाज जाते समय भगवान श्रीराम ने इसी जगह विश्राम किया था।
उत्तर प्रदेश में वाराणसी के रामनगर, इटावा के जसवंतनगर, प्रयागराज और अल्मोड़ा की रामलीलाएं मशहूर हैं। इनका स्वरूप अलग-अलग हो सकता है, पर सबके केंद्र में राम ही हैं। मसलन भुवनेश्वर में ये साही जातरा हो जाती है तो चमोली में रम्मण। कुछ जगहों पर तो रामायण के अन्य प्रसंगों मसलन धनुष यज्ञ, भरत मिलाप को भी केंद्र बनाकर आयोजन होते हैं। रही बात भारत की तो रामलीला का इतिहास 500 साल से भी पुराना है। हर दो-चार गांव के अंतराल पर अमूमन क्वार के एकम से लेकर एकादशी के दौरान रामलीला का आयोजन होता है। यहां के लोगों के लिए राम आस हैं।
इसीलिए वह सब कुछ रामभरोसे ही छोड़ देते हैं। उनके लिए राम दाता हैं। वह जो चाहेंगे वही होगा, “होइहि सोई जो राम रचि राखा” का भाव भी यही है। लिहाजा वर्षों पहले कठिन हालातों में गिरिमिटिया के रूप में जो लोग मॉरीशस, टोबैगो, ट्रीनीडाड, सूरीनाम आदि देशों में गये, वह अपने साथ भरोसे के रूप में “राम” को ले गये। उनकी पहल से राममंदिर भी बने और रामलीलाएं भी शुरू हुईं। फीजी जैसे छोटे से देश में 50 से अधिक रामलीला मंडलियां हैं। ट्रीनीडॉड का रामलीला मंदिर करीब 100 साल पुराना है। उसी राम का जो हमारे लिए मर्यादा पुरुषोत्तम हैं उनके भव्यतम मंदिर निर्माण के लिए पिछले साल पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में अयोध्या स्थित जन्मभूमि पर भूमि पूजन भी हो चुका है। उसके बाद से जारी निर्माण के क्रम में मंदिर के चबूतरे का स्वरूप आकर ले चुका है।
भव्यतम राम मंदिर के निर्माण के साथ ही अयोध्या के कायाकल्प का भी काम पूरा हो जाएगा। मालूम हो कि मुख्यमंत्री योगी की मंशा है कि आने वाले समय में प्रभु श्रीराम की व्यापकता के अनुसार ही अयोध्या को इस तरह विकसित किया जाए कि उसका शुमार दुनिया के पर्यटन के लिहाज से सबसे बेहतरीन शहरों में हो। इस बाबत काम भी चल रहे हैं। योगी सरकार-2 में इस काम में और तेजी ली जाएगी। मुख्यमंत्री के रूप में दुबारा शपथ ग्रहण के बाद योगी आदित्यनाथ ने सर्वप्रथम अयोध्या जाकर इस बात का संकेत भी दे दिया।