Deepa Malik Exclusive : देश को पैरालंपिक में मेडल दिलाने वाली पहली भारतीय महिला

जो सपना सभी दिव्यांगजनों ने एक समय में देखा था आज उसमें सच्चाई के रंग भरने लगे हैं

ये शब्द हैं भारत की पहली महिला पैराएथलीट दीपा मलिक के। पूरे जीवन के सफर में हर बार हम अपनी ही सीमाओं से बंधे होते हैं। ये वे सीमाएं बन जाती हैं जिनमें हम स्वयं को परिभाषित करते हैं। हालांकि, कुछ ऐसे भी होते हैं जो इन बाधाओं को तोड़ते हैं और अपनी सीमाओं से आगे बढ़ते हैं। जूनून, लगन और जज्बे के आगे अक्सर शारीरिक अक्षमता भी घुटने तक देती है। और इसी जूनून के कारण ही टोक्यो पैरालंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन कर इतिहास रच दिया है। अबकी बार भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 19 मेडल जीते हैं।

इसी के चलते पीबीएनएस ने भारतीय पैरालंपिक कमिटी की प्रेजिडेंट और भारत की पहली महिला पैराएथलीट दीपा मलिक से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू किया। वह कहती हैं कि जब मैंने खेलना शुरू किया था, तब पैराएथलीट की ज्यादा पहचान नहीं थी। लेकिन इसबार हमारे मेडल्स को खूब सराहा गया है। जब भारतीय खिलाड़ी टोक्यो से निकल रहे थे, तब वहां कहा गया कि सबसे ज्यादा इंगेजमेंट भारतवासियों की रही। इससे साफ है कि भारत ने केवल मेडल ही नहीं बल्कि लोगों के दिल भी जीते हैं। अब देशवासी हमें जानने लगे हैं, पहचानने लगे हैं और सराहना करने लगे हैं। वे कहती हैं, “जो सपना सभी दिव्यांगजनों ने एक समय देखा था आज उसमें सच्चाई के रंग भरने लगे हैं।”

उपलब्धियों के साथ आती हैं जिम्मेदारियां

आज देश में उन्हें पैरालंपिक खिलाड़ियों के बीच एक रोशनी के तौर पर देखा जाता है, वो रोशनी जो न जाने आज कितने खिलाड़ियों की प्रेरणा बन गयी है। लेकिन इस प्रेरणा को दीपा एक जिम्मेदारी की तरह लेती हैं, वे कहती हैं कि जब खिलाड़ी अवार्ड्स जीतता है तब उसके साथ उसके कंधों पर जिम्मेदारी भी बढ़ जाती हैं, लोगों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। भारतीय पैरालंपिक समिति की प्रेजिडेंट का पद एक बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि जब एक खिलाड़ी को अध्यक्ष बनाया गया तब मुझसे खिलाड़ियों की भी अपेक्षाएं बढ़ गयीं। लेकिन एक खिलाड़ी होने के तौर पर मुझे उनकी जरूरतों का पता था कि कैसी सुविधाएं किसी पैरालंपिक खिलाड़ी के लिए होनी चाहिये।

उन्होंने पीबीएनएस को बताया कि सभी समितियों ने मिलकर उनका हर कदम पर साथ दिया। पैरा टीटी, पैरा आर्चरी इनके साथ भी हमारा तालमेल बना रहा। स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया भी जिज्ञासा के साथ टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम के तहत खिलाड़ियों की मदद कर रही थी और इसी टीमवर्क के चलते नतीजा भी बेहतरीन निकला।

खुद को देखती हूं स्पोर्ट्स एक्टिविस्ट की तरह : दीपा मलिक

दृढ़ इच्छा रखने वाली, कभी हार न मानने वाली और हमेशा मुस्कुराती रहने वाली दीपा मलिक खुद को एक स्पोर्ट्स एक्टिविस्ट की तरह देखती हैं। वह कहती हैं कि किसी भी खिलाड़ी की सफलता में उसके समाज का भी उतना ही योगदान होता है। फिजिकल फॉर्म और मेंटल फॉर्म, दोनों को लेकर भी एक खिलाड़ी के आगे चुनौतियां होती हैं। लेकिन आज जो खिलाड़ी जीतकर आये हैं इसकी वजह से पैर-खिलाड़ियों को लेकर समाज की सोच बदल रही है।

उनके अनुसार, एक दिव्यांग खिलाड़ी के सशक्तिकरण के लिए खेल से बड़ा कोई माध्यम नहीं है। इससे उसे प्रशंसा मिलती है, नौकरी मिलती है, समाज में उन्हें स्वीकार किया जाता है, देश के पीएम उन्हें खुद बधाई देते हैं, सोसाइटी में उनका नाम ऊपर होता है। वह कहती हैं, “हर मेडल के साथ उस जगह बदलाव आता है। 2016 की मुहिम आज टोक्यो में इमारत बन गयी है।”

आने वाले पैरालंपिक में होगी 40 से अधिक मेडल लाने की कोशिश

टोक्यो पैरालंपिक में भारत की बात करें तो कुल 19 मेडल जीतते हुए हमने अब तक का अपना सबसे शानदार प्रदर्शन किया है। खिलाड़ियों ने पैरालंपिक में कुल पांच गोल्ड मेडल, आठ सिल्वर और छह ब्रॉन्ज मेडल जीता। भारतीय पैरालंपिक कमिटी की प्रेजिडेंट के तौर पर दीपा चाहती हैं कि भारत आने वाले समय में 40 से भी अधिक मेडल जीते और भारत का स्थान पैरालंपिक टैली में टॉप पर आये। वह कहती हैं कि अब हम आगे की तैयारी कर रहे हैं। आने वाले समय में हम कोशिश करेंगे कि कम से कम 40 मेडल लाएं। लेकिन मेडल कितनी भी डिजिट में आये, देश की रैंकिंग सिंगल डिजिट में जानी चाहिए। हम चाहते हैं कि भारत की रैंक टॉप 5 में आये।

आने वाले खिलाड़ी रखें खुद पर भरोसा

आज दीपा मलिक अपने अवरोधों को त्याग कर, सामाजिक वर्जनाओं को तोड़कर, अपने लिए और उन सभी लोगों के लिए सबसे अनोखे तरीके से खड़ी हुई हैं जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं। आने वाले खिलाड़ियों को उन्होंने संदेश देते हुए वह कहती हैं, “आप खुद पर भरोसा रखिए। हमारे खिलाड़ी हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। हम केवल पार्टिसिपेशन की बात नहीं कर रहे हैं, आज हम टॉप 5 और टॉप 6 की बात कर रहे हैं। इसमें हमें बस भरोसा रखना होगा कि हम भी मेडल जीत सकते हैं।”

कमजोरी को बनाया अपनी सबसे बड़ी ताकत

बता दें, जेवलिन थ्रो में दीपा के नाम पर एशियाई रिकॉर्ड है, 2011 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक है। 2012 मलेशिया ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जेवलिन और डिस्कस थ्रो में दो गोल्ड मेडल हैं। 2014 में चाइना ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप बीजिंग में शॉटपुट में गोल्ड मेडल है, 2016 पैरालिम्पिक गेम्स में मेडल और न जाने कितने ऐसे रिकार्ड्स और मेडल्स हैं, जिनपर दीपा मालिक का नाम लिखा है। अब दीपा भारतीय पैरालम्पिक समिति की प्रमुख हैं।

ये रिकार्ड्स और मेडल महज एक बानगी है। दीपा अर्जुन पुरस्कार, खेल रत्न पुरस्कार और दर्जनों पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। कहते हैं जब इंसान अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लेता है, तो दुनिया की कोई ताकत उसे सफल होने से नहीं रोक सकती और दीपा मलिक हमारे सामने इसका साक्षात उदाहरण हैं।

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