यह प्रसंग लिखना इसलिए जरूरी था कि हमें अपने इर्द-गिर्द की बौद्धिक-सड़ांध को भी समझते हुए आगे चलना चाहिए। इस खबर को लेकर ढेर सारी समझदार, जागरूक, बुद्धिमान और जिज्ञासु प्रतिक्रियाएं मिलीं। इससे आत्मविश्वास जगता है कि समाज अभी सकारात्मक-जिज्ञासा से खाली नहीं हुआ है। ‘मित्रों के चेहरे वाली किताब’ के कई साथियों ने इस खबर की तथ्यता और सत्यता भी परखनी चाही… यह जिज्ञासा स्वाभाविक है। कई साथियों ने अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं के कई संदर्भों का हवाला दिया और मेरी खबर की प्रत्यक्ष और परोक्ष पुष्टि की। एक दो अखबारों ने इस तरह भी लिख डाला, ‘नगालैंड में शोध-परीक्षण, केंद्र ने दिए जांच के आदेश’…। जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच पहले ही हो चुकी है। आज एक मित्र ने एक रूसी अखबार का संदर्भ देते हुए उस खबर की पुष्टि की। जहां तक मीडिया के दायित्वबोध का प्रसंग है, इस बारे में कुछ कहना नहीं है, बस समझना है। सत्ता की भावाभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) के मुताबिक खबरें परोसने की मीडियाई-होड़ में आप क्या सोचते हैं कि ऐसी कोई खबर लिखी या दिखाई जाएगी जो सत्ता को परेशान करे और आम आदमी को राहत दे..! ‘फेसबुक’ किसी अखबार और चैनल से कम है क्या..? जिन्हें खबर बेचकर खाना नहीं है, वे सब आएं और इस सर्वाधिक प्रसारित ‘सार्वजनिक-अखबार’ पर लिखें। खबर अगर तथ्यपूर्ण और सत्यपूर्ण हो तो आप इस सामाजिक फोरम पर पत्रकारिता का डंका बजा सकते हैं… संपादक या मालिक नहीं छापे तो इस पर लिख कर अलख जगा दो… पत्रकारिता को किसी भी तरह अगर जिंदा रखना है तो यह करना होगा।
(1) बीआर अंसिल, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, बंगलुरू
(2) उमा रामकृष्णन, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, बंगलुरू
(3) पाइलट डोवी, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, बंगलुरू
(4) झिंगलाउ यांग, वूहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, चीन
(5) झेंगली शी, वूहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, चीन
(6) क्रिस्टोफर सी ब्रोडर, यूनिफॉर्म्ड सर्विसेज़ युनिवर्सिटी ऑफ दि हेल्थ साइंसेज़, अमेरिका
(7) डॉलीस एचडब्लू लो, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर
(8) एरिक डी लैंग, यूनिफॉर्म्ड सर्विसेज़ युनिवर्सिटी ऑफ दि हेल्थ साइंसेज़, मैरीलैंड, अमेरिका
(9) गैविन जेडी स्मिथ, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर
(10) मार्टिन लिंस्टर, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर
(11) यीहुई चेन, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर और
(12) ईयान एच मैन्डेन्हॉल, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर शामिल थे।
नगालैंड के मिमी गांव में 85 आदिवासियों पर हुए गुप्त शोध-परीक्षण की फंडिंग अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाली ‘डिफेंस थ्रेट रिडक्शन एजेंसी’ (डीटीआरए) कर रही थी। गुप्त शोध-परीक्षण की रिपोर्ट उजागर होने के बाद चौकन्ना हुई भारत सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) से इस मामले की जांच कराई। लेकिन जांच रिपोर्ट दबा दी गई। कोरोना वायरस को जैविक-युद्ध-हथियार (बायोलॉजिकल-वार-फेयर) बनाने के चीन के कुचक्र का आधिकारिक खुलासा होने के बावजूद भारत सरकार ने रक्षा मंत्रालय या केंद्रीय जांच एजेंसी से इस संवेदनशील प्रकरण की सूक्ष्मता से जांच कराने की जरूरत नहीं समझी। जबकि अमेरिका का ‘बायोलॉजिकल वीपन्स एंटी टेररिज़्म एक्ट ऑफ 1989’ ड्राफ्ट करने वाले प्रख्यात वैज्ञानिक एवं कानूनविद् डॉ. फ्रांसिस बॉयले आधिकारिक तौर पर यह दर्ज करा चुके हैं कि कोरोना वायरस जैविक-युद्ध-हथियार है।
चीन के वैज्ञानिकों (Biological Espionage Agents) ने कोरोना वायरस का पैथोजेन सबसे पहले कनाडा के विन्नीपेग स्थित नेशनल माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेट्री से चुराया था। इसकी आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है। इसके बाद चीन के वैज्ञानिक वेशधारी Biological Espionage Agents ने अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय से कई खतरनाक वायरस के पैथोजेन चुराए और उसे चीन पहुंचाया। खतरनाक वायरस और संवेदनशील सूचनाओं की तस्करी के आरोप में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के केमिस्ट्री एवं केमिकल बायोलॉजी डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ. चार्ल्स लीबर को पिछले महीने 20 जनवरी को गिरफ्तार किया गया। डॉ. लीबर चीन को संवेदनशील सूचनाएं लीक करने के एवज में भारी रकम पाता था। यहां तक कि चीन ने डॉ. लीबर को वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी का ‘रणनीतिक वैज्ञानिक’ (स्ट्रैटेजिक साइंटिस्ट) के मानद पद पर भी नियुक्त कर रखा था। 29 साल की युवा वैज्ञानिक यांकिंग ये भी गिरफ्तार की गई थी। यांकिंग ये की गिरफ्तारी के लिए अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) को बाकायदा लुक-आउट नोटिस जारी करनी पड़ी थी। बाद में पता चला कि यांकिंग ये वैज्ञानिक के वेश में काम कर रही थी, जबकि असलियत में वह चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की लेफ्टिनेंट थी। चीन ने अपने सारे कूटनीतिक दांव आजमा कर लेफ्टिनेंट यांकिंग ये को अमेरिकी गिरफ्त से छुड़ा लिया। 10 दिसम्बर 2019 को बॉस्टन के लोगान इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर चीनी वैज्ञानिक झाओसोंग झेंग को खतरनाक वायरस की 21 वायल्स के साथ रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया। वह ये खतरनाक वायरस चीन ले जा रहा था। बाद में यह भी पाया गय़ा कि झाओसोंग जाली पासपोर्ट और फर्जी दस्तावेज लेकर अमेरिका आया था। …आगे के क्रम में इसके कई और पेंच खोलेंगे और इस पर हम लोग विस्तार से चर्चा करेंगे… आप सबको शुभकामनाएं। वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन के फेसबुक वाल से