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खेत खाते शहर और गांव निगलते मोहल्ले

शहर और गांव का बिगड़ता संतुलन

2011 की जनगणना पर आधारित संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2001 में भारत की शहरी आबादी 31.16 फीसद थी। 2018 में यह बढ़कर 33.6 फीसद हो गई। पूर्वानुमान के अनुसार 2050 तक शहरी आबादी करीब 50 फीसद हो जाएगी। सुरसा के मुंह की तरह इस विस्तार के नाते अब शहर खेत खाने लगे हैं। और अपने सीमा क्षेत्र में आने वाले गांवों को लीलकर मोहल्ले का शक्ल देने लगे हैं।

गांव के साथ ही यहां की सामूहिकता और परंपरा भी हो रही लापता

शहरों के इस विस्तार के नाते गांव के कई घरों में अब कोई रहने वाला नहीं। कुछ खंडहर बन गए हैं। कुछ जमींदोज। गांव में रहने वाली दो पीढ़ियों की जान पहचान तेजी से खत्म होती जा रही है। यही नहीं खुद के परिवार के लोग जो अलग अलग शहरों में बस गए हैं उनकी भी तीसरी पीढ़ी में न के बराबर कम्युनिकेशन है। इस सबके साथ सिर्फ गांव ही नहीं लापता हो रहे हैं। वहां सहयोग, सहकार की पूरी परंपरा नष्ट हो रही है।

गांवों में लोग बोर नहीं होते थे

अगर आपका ताल्लुक गांव से रहा हो तो आपने शायद ही कभी किसी को कहते सुना हो कि बोर हो रहे या बोर हो गए। खेती बारी, बाग बगीचा, पशुओं के सानी पानी, दरवाजे की सफाई, किसी पेड़ की छांव में पोखरे या कुंए के किनारे, कोल्हूआरे पर समय कट ही जाता था। बच्चों का समय खेल कूद सीजन के अनुसार ओल्हा पाती , गुल्ली डंडा, कबड्डी, चिकई, गेना भड़भड़ जैसे खेलों में निकल जाता था।

शहरों ने जिनके पास सब कुछ है वो भी बोर होते हैं

शहरों में तो बोरियत एक कॉमन शब्द है। कोई दफ्तर के एकरस रूटीन से बोर हो रहा है तो कोई लाखों करोड़ों रुपए से बनाए गए या सभी सुविधाओं से सम्पन्न अपने घर या फ्लैट में। मसलन जिनके पास सब कुछ है वह भी बोर हो रहे हैं। अवसाद महामारी का रूप ले चुकी है। प्रदूषण जनित रोग अलग से।

बढ़ती आबादी से चरमरा रही हैं शहरों की बुनियादी सुविधाएं

बढ़ती आबादी के कारण शहरों की बुनियादी समस्याएं )बिजली, पानी, सुरक्षित परिवहन, गुणवत्ता पूर्ण जीवन आदि) बुरी तरह चरमरा रही है। बेंगलुरु जैसे कुछ महानगर प्यासे हैं तो देश की दिल्ली समेत कई महानगर वायु प्रदूषण के कारण गैस के चैंबर बनते जा रहे है। जलवायु परिवर्तन जनित ग्लोबल वार्मिंग के कारण अप्रत्याशित मौसम कम समय में अधिक बारिश, बारिश की वजह से जलजमाव, बारिश की निरंतरता की कमी से सूखे दिनों की लंबी अवधि अप्रत्याशित गर्मी और ठंड कोढ़ में खाज का काम कर रहे हैं। समय आ गया है कि सिर्फ शहरों को ही नहीं गांवों को स्मार्ट बनाएं। ताकि कुछ लोग तो अपने उस गांव की ओर लौटें जिसे बाबू ने देश की आत्मा कहा था।

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