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चौरीचौरा शताब्दी समारोह-सुबह से शाम तक छाया रहा जोश मिश्रित उमंग,आजादी की लड़ाई और देशभक्ति के नाम रहीं मंचीय प्रस्तुतियां

सुबह शहीदों के स्मारक स्थलों से निकली प्रभातफेरी में गूंजते रहे गगनभेदी नारे ,शाम को नयनाभिराम दीपोत्सव, पुलिस बैंड पर गूंजे देशभक्ति के तराने .

गोरखपुर । चौरीचौरा शताब्दी समारोह के शुभारंभ के पहले दिन सुबह से शाम तक जोश मिश्रित उमंग छाया रहा। सुबह चौरीचौरा समेत जिले के सभी स्मारक स्थलों से गगनभेदी नारों के बीच प्रभातफेरी निकाली गई तो मुख्य महोत्सव स्थल चौरीचौरा में मंच पर पूरे दिन देश की आजादी की लड़ाई से जुड़े कार्यक्रम लोगों में जोश भरते रहे। शाम को शहीदों के स्मारक स्थलों पर दीपोत्सव की छटा देखते ही बन रही थी। पुलिस बैंड पर देशभक्ति गीतों के गूँजते तराने पूरे कार्यक्रम को ओर उंचाई दे रहे थे।

मुख्य समारोह के उद्घाटन के बाद शुरू हुई मंचीय कार्यक्रमों की श्रृंखला। चौरीचौरा जनप्रतिरोध के सौवें बरस के अवसर पर आयोजित चौरीचौरा शताब्दी महोत्सव में “आजादी की क्रांति 1857 से 1922″ नाट्य प्रस्तुति के जरिये चौरीचौरा की घटना की यादें जीवंत हो उठीं। मानवेंद्र त्रिपाठी की परिकल्पना व निर्देशन में इस नाटक का मंचन देखकर लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत की ज्यादती को शिद्दत से महसूस किया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1922 तक की ऐतिहासिक घटनाओं की प्रभावी प्रस्तुति ने दर्शकों को अंत तक अपने आकर्षण में बांधे रखा।

कहानी के रूप में शुरू हुए इस मंचन में झांसी की रानी के शौर्य से लेकर चौरीचौरा जनप्रतिरोध को लाेगों के सामने प्रस्तुत किया गया। लगान के नाम पर किस तरह किसानों को सताया जा रहा था। लगान न मिलने पर अंग्रेज व उनकी पुलिस कैसे लोगों को प्रताड़ित करती थी, कैसे घर की इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश होती थी, इस बिन्दुओं को जीवंत तरीके से उभारा गया। जमींदारों एवं पुलिस के आतंक से प्रताड़ित जनता विरोध पर उतरती है। पुलिस की ओर से फायरिंग की जाती है, कई सत्याग्रही शहीद हो जाते हैं। इस घटना की प्रतिक्रिया में सत्याग्रहियों में आक्रोश पनपा और उसकी परिणति में थाना जला दिया गया। किसानों पर अत्याचार करने वाले ब्रिटिश पुलिस के 23 कर्मी मारे गए। किस तरह से इस घटना की सूचना महात्मा गांधी तक पहुंचती है और उनकी ओर से असहयोग आंदोलन को स्थगित करने के फैसले से आम किसान किस तरह दुखी होते हैं, यह दृश्य काफी मार्मिक तरीके से पेश किया गया।

मुख्य मंच से आल्हा सम्राट फौजदार सिंह ने वीर सेनानियों की गाथा सुनाकर दर्शकों में जोश भर दिया। आल्हा सम्राट की लाइन ”चौरीचौरा लगा महोत्सव, आए बड़े-बड़े सरदार…” पर दर्शकों ने वंदे मातरम का नारा लगाकर पूरे पंडाल को गुंजायमान कर दिया।मंच पर पहुंचते ही फौजदार सिंह ने भारत माता के साथ वीर भूमि चौरीचौरा की जय बोलने के साथ स्थानीय लोगों से स्वयं को जोड़ने में कामयाब रहे। करीब आधा घंटा तक हुई इस प्रस्तुति में दर्शक अपनी कुर्सियों से खड़े रहे। इसके बाद महोबा से आए रामचरण यादव व साथी कलाकारों ने दिवाली व डंडा पाई नृत्य की भावपूर्ण प्रस्तुति दी। प्रयागराज की पूर्णिमा व साथियों ने ढेढिया नृत्य पर सधे कदमताल का शानदार प्रदर्शन किया। जोश भरने की अब बारी थी फरूवाही नृत्य के कलाकारों की। चौरीचौरा के रामज्ञान यादव व टीम ने अमर शहीद बंधु सिंह पर केंद्रित प्रस्तुति दी तो छेदी यादव व साथियों ने “फुंकलें चौरीचौरा थनवा ए मितवा” पर फरूवाही से लोगों भुजाएं फड़का दीं।

फरूवाही नृत्य के बाद मंच पर आए अखिलेश सिंह एवं उनकी टीम ने कार्यकम की शुरूआत देशभक्ति गीत से की। ””जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा..वो भारत देश है मेरा…”” गीत शुरू करते ही पंडाल में उपस्थित दर्शकों ने वंदे मातरम का जयघोष किया। गीत जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, लोग तालियों की गड़गड़ाहट भी बढ़ती गई। अखिलेश सिंह की ओर से प्रस्तुत देशभक्ति एवं सूफी गीतों का लोगों ने खूब आनंद उठाया। उनकी ओर से प्रस्तुत गीत ”’छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नयना मिलाय के…” ‘को खूब सराहना मिली।

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