सिखों को आधार कार्ड बनाने, गैस कनेक्शन, बैंक खाता खोलने, के आदेश भी जारी कर दिया।” गौर कीजिए इसमें कहीं अप्रवासी “मुसलमान” शामिल नहीं थे। लेकिन फिर भी देश में कहीं कोई विरोध नहीं हुआ। कहीं शाहीनबाग जैसा मजमा नहीं जुटा। किसी यूनिवर्सिटी कालेज में हमें चाहिए आजादी का कोरस नहीं सुनाई दिया।
अब अमित शाह का दर्द ये है कि- “यही सरकु
लर कांग्रेस लाती है तो वह एक सेकुलर पार्टी है और हम उस सरकुलर पर कानून बनाते हैं तो हम कम्युनल हैं।” शाह ने जब सब काला सफेद कर दिया तो एंकर ने कहा- “गलती आप की है आपकी तरफ से कम्युनिकेशन गैप हुआ।” इस पर शाह ने कहा-“नहीं ये सारी बातें मैंने संसद में मैं कह चुका हूं लेकिन मीडिया इसे दिखाता नहीं। आज आप दिखाएंगी क्योंकि आपकी मजबूरी है कि ये कार्यक्रम लाइव चल रहा है।”
तो आप देखिए एक सरकार,
जिस पर ये गंभीर आरोप है कि उसने देश भर की मीडिया को खरीद रखा है, उसी सरकार का गृहमंत्री एक टीवी चैनल पर रो रहा है कि ‘मीडिया उनके साथ अन्याय कर रहा है।’ मेरी समझ से मीडिया अन्याय नहीं कर रहा है। दरअसल वह सच सामने लाना ही नहीं चाहता। देश में भ्रम बरकार रखने से ही उसकी दुकान चलती है। अब सोचिए दो महीने से शाहीनबाग का ये धरना न चल रहा होता तो दिन रात ये टीवी चैनल वाले क्या दिखाते। चलो मान लेते हैं कि ये सब कांग्रेस और भाजपा की सियासी नूरा-कुश्ती है। लेकिन इस देश के पढ़े लिखे लोग भी कैसे इस सियासत में कूद कर इसका हिस्सा बन जाते हैं और ‘कऊआ कान ले गया’ टाइप की मूर्खतापूर्ण बहसों में फंस जाते हैं। जब मुझसे नहीं रहा गया तो पिछले तीन चार दिन से इस विषय पर एक आम नागरिक की हैसियत से लिख रहा हूं। विरोध भी झेल रहा हूं। बाजवक्त सही को सही और गलत को गलत कहना इतना आसान भी नहीं होता। पर जोखिम तो उठाने पड़ते हैं ना। वरिष्ठ पत्रकार दया सागर जी के फेसबुक के वाल से