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अमित शाह का दर्द समझ सकतें हैं

‘टाइम्स नाउ’ में गृह मंत्री अमित शाह के कल के इंटरव्यू में आप उनकी तकलीफ और दर्द समझ सकते हैं। इस इंटरव्यू में शाह तैयारी से आए थे और उन्होंने गृह मंत्रालय की पूरी फाइल खोल दी। उन्होंने बताया कि “पाकिस्तान व बांग्लादेश से आए हिन्दुओं और सिखों को भारत में रहने के लिए लांग टर्म वीजा देने की वकालत कांग्रेस सरकार 30 मार्च 1964 से ही करती आई है। उस वक्त मेरा जन्म भी नहीं हुआ था। तब न भाजपा दूर दूर तक सत्ता में थी।” 60 से लेकर 80 के दशक तक गृह मंत्रालय से कोई दो दर्जन आदेश जारी हुए जिसमें बाहर से आए हिन्दू और सिखों को देश में रहने इजाजत दी गई। फिर 1986 में पहली बार बाहर से हिन्दू और सिखों को देश की नागरिकता देने की प्रस्ताव को कांग्रेस की कैबिनेट कमेटी ने मंजूरी दी। (इसमें मुसलमान शब्द नहीं था।) फिर 1987, 1997, 1999, 2010 में गृह मंत्रालय से जारी सरकुलरों में कहा गया कि “विशेषकर हिन्दू और सिखों के लिए विभिन्न उदारवादी प्रावधान करते हुए नागरिकता दी जाए।” फिर 2011, 2012, में इसमें जोड़ा गया कि “बौद्ध, जैन, और ईसाइयों को भी लांग टर्म वीजा दिया जाए।” गौर कीजिए इन दो दर्जन से ज्यादा फाइलों में कहीं भी पाक व बांग्लादेश से आए “मुसलमानों” को लांग टर्म वीजा या नागरिकता देने की बात नहीं कही गई। फिर 2014 में तथा “कथित सेकुलर पार्टी कांग्रेस” के ही राज में एक समय ऐसा भी आया जब गृह मंत्रालय ने “देश में रह रहे अवैध अप्रवासी हिन्दुओ और

सिखों को आधार कार्ड बनाने, गैस कनेक्शन, बैंक खाता खोलने, के आदेश भी जारी कर दिया।” गौर कीजिए इसमें कहीं अप्रवासी “मुसलमान” शामिल नहीं थे। लेकिन फिर भी देश में कहीं कोई विरोध नहीं हुआ। कहीं शाहीनबाग जैसा मजमा नहीं जुटा। किसी यूनिवर्सिटी कालेज में हमें चाहिए आजादी का कोरस नहीं सुनाई दिया।
अब अमित शाह का दर्द ये है कि- “यही सरकु

लर कांग्रेस लाती है तो वह एक सेकुलर पार्टी है और हम उस सरकुलर पर कानून बनाते हैं तो हम कम्युनल हैं।” शाह ने जब सब काला सफेद कर दिया तो एंकर ने कहा- “गलती आप की है आपकी तरफ से कम्युनिकेशन गैप हुआ।” इस पर शाह ने कहा-“नहीं ये सारी बातें मैंने संसद में मैं कह चुका हूं लेकिन मीडिया इसे दिखाता नहीं। आज आप दिखाएंगी क्योंकि आपकी मजबूरी है कि ये कार्यक्रम लाइव चल रहा है।”
तो आप देखिए एक सरकार,

जिस पर ये गंभीर आरोप है कि उसने देश भर की मीडिया को खरीद रखा है, उसी सरकार का गृहमंत्री एक टीवी चैनल पर रो रहा है कि ‘मीडिया उनके साथ अन्याय कर रहा है।’ मेरी समझ से मीडिया अन्याय नहीं कर रहा है। दरअसल वह सच सामने लाना ही नहीं चाहता। देश में भ्रम बरकार रखने से ही उसकी दुकान चलती है। अब सोचिए दो महीने से शाहीनबाग का ये धरना न चल रहा होता तो दिन रात ये टीवी चैनल वाले क्या दिखाते। चलो मान लेते हैं कि ये सब कांग्रेस और भाजपा की सियासी नूरा-कुश्ती है। लेकिन इस देश के पढ़े लिखे लोग भी कैसे इस सियासत में कूद कर इसका हिस्सा बन जाते हैं और ‘कऊआ कान ले गया’ टाइप की मूर्खतापूर्ण बहसों में फंस जाते हैं। जब मुझसे नहीं रहा गया तो पिछले तीन चार दिन से इस विषय पर एक आम नागरिक की हैसियत से लिख रहा हूं। विरोध भी झेल रहा हूं। बाजवक्त सही को सही और गलत को गलत कहना इतना आसान भी नहीं होता। पर जोखिम तो उठाने पड़ते हैं ना। वरिष्ठ पत्रकार दया सागर जी के फेसबुक के वाल से

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