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अपने अन्दर कई संभावनाएं समेटे हुए मंगल ग्रह पर मिले ‘ब्लू डून्स’

नासा ने हाल ही में मंगल ग्रह की एक अनोखी तस्वीर जारी की। नासा के अनुसार यह तस्वीर मंगल ग्रह के उत्तरी ध्रुव से ली गई है। इस तस्वीर को साझा करते हुए नासा ने लिखा, ‘ब्लू डून्स ऑन द रेड प्लेनेट’। इसका हिंदी में मतलब है – लाल ग्रह पर नीले टीले। मंगल ग्रह की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल, इन टीलों को इस ग्रह पर चलने वाली तेज हवाओं ने बनाया है। मंगल ग्रह पर यह इलाका करीब 30 किलोमीटर में फैला हुआ है। नासा के मुताबिक इस तस्वीर में दिख रहे अलग-अलग रंग असल में लाल ग्रह के सतह पर अलग-अलग तापमान को प्रदर्शित कर रहे हैं। इस तस्वीर में दिख रहा पीला या नारंगी रंग ज्यादा तापमान को दर्शा रहा है, जबकि नीला रंग ठंडे तापमान को बताता है।

थर्मल एमिशन इमेजिंग सिस्टम की मदद से ली गई तस्वीर

इस विशेष तस्वीर को नासा के मार्स ओडिसी ऑर्बिटर के इंफ्रारेड कैमरे से खींचा गया है। ऑर्बिटर में मौजूद कैमरे ने थर्मल एमिशन इमेजिंग सिस्टम की मदद से ये तस्वीर ली है। गौरतलब हो, तस्वीर को मार्स ओडिसी ऑर्बिटर की बीसवीं सालगिरह पर जारी किया गया। मार्स ओडिसी ऑर्बिटर एक अंतरिक्ष यान है जो नासा द्वारा 7 अप्रैल 2001 को लॉन्च किया गया था। इसे यह पता लगाने के लिए डिजाइन किया गया है कि मंगल ग्रह किस चीज से बना है। इसका कार्य इस ग्रह पर पानी और उथले दफन बर्फ का पता लगाना तथा विकिरण वातावरण का अध्ययन करना भी है।

इससे पहले भी नासा को मंगल पर दिखी हैं जीवन की संभावनाएं

पिछले दो दशकों में, नासा के मार्स एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम द्वारा शुरुआत किए गए मिशनों ने हमें दिखाया कि कई वर्षों पहले मंगल ग्रह अभी की तुलना में बहुत अलग था। यह अभी की तरह ठंडा और शुष्क नहीं था। वहां उतारे गए और कक्षा में घूम रहे मिशनों द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूत ने अरबों साल पहले वहां गीली सतह होने की सम्भावना जताई है। ये सबूत वहां माइक्रोबियल जीवन के विकास का समर्थन करते हैं। जुलाई-अगस्त 2020 में नासा ने फ्लोरिडा से मार्स 2020 पर्सीवरेंस रोवर लॉन्च किया था। 18 फरवरी 2021 को यह मंगल ग्रह पर पहुंचा। यह मंगल ग्रह पर कम से कम एक मंगल वर्ष जो दो पृथ्वी वर्ष के बराबर होता है, लैंडिंग के आसपास के क्षेत्र की खोज करते हुए बिताएगा।

अन्य देशों ने भी की है मंगल तक पहुंचने की कोशिश

1960 और 1996 के बीच, यूएस और यूएसएसआर (और बाद में रूस) एकमात्र ऐसे देश थे, जिन्होंने मंगल के रहस्यों को पता करने का प्रयास किया था। वास्तव में, अब तक दर्ज किए गए कुल 48 मिशनों में से 43 अमेरिका और यूएसएसआर (रूस) के हैं। इन दोनों देशों के अलावा केवल भारत, चीन, जापान, यूएई और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने मंगल मिशनों को अंजाम दिया है। इन सब में जापान ने 1998 में अपना मिशन शुरू किया था जबकि यूरोप ने 2003 में अपना मिशन लॉन्च किया था। शेष तीन ने 2010 के बाद ही अपना मिशन शुरू किया था।

इसरो ने पहले ही प्रयास में पाई थी सफलता

एक बार जब भारत ने मंगल ग्रह पर जाने का फैसला किया, तो इसरो के पास खोने के लिए समय नहीं था क्योंकि निकटतम लॉन्च विंडो कुछ ही महीने दूर था। इसरो यह मौका खोने का जोखिम नहीं उठा सकता था क्योंकि इसके बाद अगला लॉन्च विंडों 780 दिनों के बाद था। इसके मद्देनजर मिशन योजना, अंतरिक्ष यान, लॉन्च वाहन का निर्माण और समर्थन प्रणाली तैयार करने का काम बहुत तेजी से किया गया। इस तरह भारत के पहले मार्स ऑर्बिटर को सफलतापूर्वक 5 नवंबर, 2013 को पीएसएलवी-सी 25 द्वारा लॉन्च किया गया। यह इसरो का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन मार्स ऑर्बिटर मिशन था, जिसने 24 सितंबर 2014 को मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया था।

अंतरिक्ष में छिपी है अनगिनत संभावनाएं

एक इंटरप्लेनेटरी मिशन में सबसे बड़ी चुनौती दो ग्रहों के बीच की लम्बी दूरी होती है। ऐसे में मंगल तक पहुंचना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। मंगल ग्रह खुद में कई राज समेटे हुए है। मंगल ग्रह के अलावा अंतरिक्ष के ऐसे और भी कई रहस्य हैं, जिससे हम अनभिज्ञ हैं। इन मिशनों के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का विकास, साहस और कौशल अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए अंतहीन संभावनाओं के द्वार खोलेगा।

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