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उप्र मदरसा अधिनियम को रद्द करने वाला इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला खारिज

तीनों नये आपराधिक कानूनों को एक जुलाई से लागू करने की तैयारी पूरी

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 22 मार्च 2024 के उस फैसले को मंगलवार को खारिज कर दिया, जिसमें ‘उत्तर प्रदेश मदरसा अधिनियम 2004’ को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला करार दिया गया था।मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पार्दीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने अंजुम कादरी और अन्य द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाते हुए कहा अधिनियम उत्तर प्रदेश में शिक्षा के मानकों को विनियमित करता है।

पीठ ने कहा, “अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों का प्रशासन करने का अधिकार पूर्ण नहीं है और राज्य ऐसी शिक्षा के मानकों को विनियमित कर सकता है।”पीठ ने कानून की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि राज्य का वहां शिक्षा के मानकों को बेहतर बनाने के लिए मदरसों को विनियमित करने में महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने कहा कि अधिनियम राज्य को मानक निर्धारित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति देता है।पीठ ने हालांकि कहा कि अधिनियम, जिस हद तक ‘फाजिल’ और ‘कामिल’ डिग्री के संबंध में उच्च शिक्षा को विनियमित करता है, वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम के विरोधाभासी और कुछ हद तक यह असंवैधानिक है।

उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने 22 अक्टूबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायालय ने तब कहा था कि देश में धार्मिक शिक्षा कभी भी अभिशाप नहीं रही है, क्योंकि यह केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों आदि के लिए भी उपलब्ध है और देश को संस्कृतियों, सभ्यताओं और धर्मों का मिश्रण होना चाहिए। (वार्ता)

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