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राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारों से जुड़े 12 नए स्मार्ट औद्योगिक शहरों का होगा विकास

कृषि अवसंरचना कोष योजना के विस्तार को स्वीकृति.पूर्वोत्तर में पनबिजली उत्पादन क्षमता बढ़ाने का प्रस्ताव मंजूर

नयी दिल्ली : केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) ने राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं से जुड़े विभिन्न राज्यों में चिह्नित जगहों पर 28,602 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 12 स्मार्ट औद्योगिक नोड/नगर विकास परियोजनाओं के विकास के प्रस्ताव को बुधवार को मंजूरी दी।ये परियोजनाएं 10 राज्यों में फैले और रणनीतिक रूप से नियोजित छह प्रमुख गलियारों के साथ जुड़ी होगी। इनमें से 11 औद्योगिक नोड और गलियारे जहां स्थापित किए जाने हैं वे है औद्योगिक क्षेत्र उत्तराखंड में खुरपिया, पंजाब में राजपुरा-पटियाला, महाराष्ट्र में दिघी, केरल में पलक्कड़, उत्‍तर प्रदेश में आगरा और प्रयागराज, बिहार में गया, तेलंगाना में जहीराबाद, आंध्र प्रदेश में ओरवाकल और कोप्पर्थी और राजस्थान में जोधपुर-पाली में विकसित किए जाएंगे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल और सीसीईए के निर्णयों की जानकारी देते हुए सूचना प्रसारण एवं रेल मंत्री अश्विनी वैषणव ने कहा कि वह एक राज्य में आदर्शन चुनाव आचार संहिता के कारण एक परियोजना की घोषणा अभी नहीं कर रहे हैं। श्री वैष्णव ने कहा कि ये परियोजनाएं भारी निवेश आकर्षित करेंगी , इनसे देश की औद्योगिक वृद्धि तेज होगी, विनिर्माण गतिविधियां बढ़ेगी।उन्होंने कहा कि परियोजनाओं के पूरा होने पर 10 लाख प्रत्यक्ष और 30 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होने की संभावना है।श्री वैष्णव ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल में तीनगुना गति से काम करने का निर्णय लिया है और पिछले तीन महीने में बुनियादी ढांचा विकास की दो लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गयी है।देश जल्द ही स्वर्णिम चतुर्भुज के आधार पर औद्योगिक स्मार्ट शहरों की एक भव्य श्रृंखला स्‍थापित करेगा।

”उन्होंने कहा कि इन परियोजनाओं का प्रस्ताव ‘पीएम गतिशिक्त पोर्टल’ की मदद से तय किया गया है जिनमें संबंधित राज्य सरकारों क। इनमें ‘प्लग-एन-प्ले’ और ‘वॉक-टू-वर्क’ अवधारणाओं के साथ मांग से पहले विश्व स्तरीय ग्रीनफील्ड औद्योगिक स्मार्ट शहरों का निर्माण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इन परियोजनाओं में निवेश और संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मजबूत, टिकाऊ बुनियादी ढांचा विकसित भारत के विजन के अनुरूप, ये परियोजनाएं निवेशकों के लिए उपलब्‍ध भूमि के साथ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भारत की भूमिका को मजबूत करेंगी।

सरकार द्वारा इन निर्णय के बारे में जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम ( एनआईसीडीपी ) को बड़े एंकर उद्योगों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) दोनों से निवेश की सुविधा प्रदान करके एक जीवंत औद्योगिक इकोसिस्‍टम को बढ़ावा देने के लिए तैयार किया गया है। ये औद्योगिक नोड 2030 तक दो लाख करोड़ डॉलर निर्यात प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेंगे, जो सरकार के आत्मनिर्भर और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी भारत के विजन को दर्शाता है।पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के अनुरूप परियोजनाओं में मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी बुनियादी ढांचा होगा, जो लोगों, वस्तुओं और सेवाओं की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करेगा। औद्योगिक शहरों को पूरे क्षेत्र के परिवर्तन के लिए विकास केन्‍द्र बनाने की परिकल्पना की गई है।

श्री वैष्णव ने कहा कि ये परियोजनाए भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के प्रधानमंत्री के संकल्प को पूरा करने में बुनियाद का काम करेंगीं। उन्होंने कहा कि वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (जीवीसी) में भारत को एक मजबूत प्रतिस्‍पर्धी के रूप में स्थापित करके, एनआईसीडीपी आवंटन के लिए तत्काल उपलब्‍ध उन्‍नत विकसित भूमि प्रदान करेगा, जिससे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिए भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करना आसान हो जाएगा।सरकार का कहना है कि ये औद्योगिक शहर गुणवत्तापूर्ण, विश्वसनीय और टिकाऊ बुनियादी ढांचा प्रदान करके, सरकार का लक्ष्य ऐसे औद्योगिक शहर बनाना है जो न केवल आर्थिक गतिविधि के केंद्र हों, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के मॉडल भी हों।

कृषि अवसंरचना कोष योजना के विस्तार को स्वीकृति

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किसानों को कृषि आदानों में वित्तीय मदद देने के लिए कृषि अवसंरचना कोष के विस्तार को स्वीकृति दी है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को यहां हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव का अनुमाेदन किया गया।बैठक के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि कृषि अवसंरचना कोष के अंतर्गत वित्तपोषण सुविधा के विस्तार को मंजूरी दी गयी है। इससे यह योजना और अधिक आकर्षक, प्रभावी और समावेशी बनेगी।इस कोष का उद्देश्य कृषि क्षेत्र की परियोजनाओं के दायरे का विस्तार करना और एक मजबूत कृषि अवसंरचना पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त सहायक उपाय करना है।उन्होंने कहा कि सरकार के इस निर्णय से कृषि क्षमताओं में वृद्धि होगी और उत्पादकता और स्थिरता में सुधार होगा।

पूर्वोत्तर में पनबिजली उत्पादन क्षमता बढ़ाने का प्रस्ताव मंजूर

सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में पनबिजली उत्पादन की क्षमता का पूरा दोहन करने के मकसद से पूर्वोत्तर के राज्यों को जलविद्युत परियोजनाओं में उनकी इक्विटी भागीदारी के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) प्रदान करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की आज यहां हुई बैठक में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और राज्य सरकार की संस्थाओं के बीच संयुक्त उद्यम (जेवी) गठित कर उसके माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र में जल विद्युत परियोजनाओं के विकास के लिए राज्य सरकारों को उनकी इक्विटी भागीदारी के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) प्रदान करने के विद्युत मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

रेल, सूचना प्रौद्योगिकी, सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संवाददाताओं को केन्द्रीय मंत्रिमंडल के फैसलों की जानकारी देते हुए यह कहा कि इस योजना का परिव्यय 4136 करोड़ रुपये है जिसे वित्त वर्ष 2024-25 से वित्त वर्ष 2031-32 तक क्रियान्वित किया जाना है। इस योजना के तहत लगभग 15000 मेगावाट की कुल जल विद्युत क्षमता को सहायता प्रदान की जाएगी। इस योजना को विद्युत मंत्रालय के कुल परिव्यय से पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए 10 प्रतिशत सकल बजटीय सहायता (जीबीएस) के माध्यम से वित्त पोषित किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि विद्युत मंत्रालय द्वारा तैयार की गई योजना में राज्य सरकार के साथ केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम की सभी परियोजनाओं के लिए एक संयुक्त उद्यम (जेवी) कंपनी के गठन का प्रावधान है। पूर्वोत्तर क्षेत्र की राज्य सरकार के इक्विटी हिस्से के लिए अनुदान कुल परियोजना इक्विटी के 24 प्रतिशत पर सीमित होगा, जो प्रति परियोजना अधिकतम 750 करोड़ रुपये होगा। प्रत्येक परियोजना के लिए 750 करोड़ रुपये की सीमा पर, यदि आवश्यक हो, तो मामला-दर-मामला आधार पर पुनर्विचार किया जाएगा। अनुदान के वितरण के समय संयुक्त उद्यम में केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम (सीपीएसयू) और राज्य सरकार की इक्विटी का अनुपात बनाए रखा जाएगा।

श्री वैष्णव ने कहा कि केंद्रीय वित्तीय सहायता केवल व्यवहार्य जल विद्युत परियोजनाओं तक ही सीमित होगी। राज्यों को परियोजना को व्यवहार्य बनाने के लिए मुफ्त बिजली/स्टैगर फ्री बिजली और /या एसजीएसटी की प्रतिपूर्ति करनी होगी। इस योजना की शुरुआत के साथ, जलविद्युत विकास में राज्य सरकारों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाएगा और जोखिम तथा जिम्मेदारियों को अधिक न्यायसंगत तरीके से साझा किया जाएगा। राज्य सरकारों के हितधारक बनने से भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन तथा स्थानीय कानून एवं व्यवस्था जैसी समस्याएं कम हो जाएंगी। इससे परियोजनाओं में लगने वाले समय और लागत दोनों की बचत होगी।

सूचना प्रसारण मंत्री ने कहा कि यह योजना पूर्वोत्तर की जल विद्युत क्षमता का पूरा उपयोग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र में पर्याप्त निवेश आएगा। इतना ही नहीं, परिवहन, पर्यटन, लघु-स्तरीय व्यवसाय के माध्यम से स्थानीय लोगों को बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष रोजगार के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रोजगार/उद्यमिता के अवसर भी मिलेंगे। जल विद्युत परियोजनाओं का विकास 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (आईएनडीसी) को साकार करने में भी योगदान देगा और ग्रिड में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के एकीकरण में मदद करेगा जिससे राष्ट्रीय ग्रिड की मजबूती, सुरक्षा और विश्वसनीयता बढ़ेगी।

उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार जल विद्युत विकास में बाधा डालने वाले मुद्दों के समाधान के लिए कई नीतिगत पहल कर रही है। जल विद्युत क्षेत्र को बढ़ावा देने तथा इसे और अधिक व्यवहार्य बनाने के लिए, मंत्रिमंडल ने 07 मार्च, 2019 को कई उपायों जैसे कि बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत घोषित करना, जल विद्युत खरीद दायित्व (एचपीओ), टैरिफ में वृद्धि के माध्यम से टैरिफ युक्तिकरण उपाय, भंडारण एचईपी में बाढ़ नियंत्रण के लिए बजटीय सहायता और सक्षम इंफ्रास्ट्रक्चर (यानी सड़कों और पुलों का निर्माण) की लागत के लिए बजटीय सहायता को मंजूरी दी।(वार्ता)

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